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________________ जनता का कलाकार महामानव वह है, निष्काम जन - सेवा ही जिसके जीवन का प्राण है । जनता - जनार्दन ही जिसका आराध्य देव है । सेवक बन कर रहना ही जिसके जीवन की आधारशिला है। अहिंसा और सत्य की पवित्र साधना ही जिसके जीवन का प्रकाशमान इतिहास है । महामानव सत्य का वह प्रकाश-स्तम्भ है, जो अपनी मृत्यु के बाद भी हजारों वर्षों तक अन्धेरे में भटकती हुई मानवता को प्रकाश देता रहता है । वह जनता का सर्वश्रेष्ठ कलाकार होता है । जिस प्रकार चतुर कलाकार बेडौल पत्थरके टुकड़े को घड़-घड़ कर सुन्दर, सुघड़ सजीव मूर्ति का रूप दे देता है, उसी प्रकार मानवता का कलाकार अविकसित, असंस्कृत, कुसंस्कार तथा कुरूढ़ियों से परिवेष्टित मानवता को प्रकाश में लाता है । उसे पशुता के स्तर से ऊँचा उठा कर देवता बना देता है। वही महामानव है, सब से ऊँचा, और सबसे महान् ! पूर्ण मानव पूर्ण मनुष्य वह है, जो राग-द्वेष की भूमिकाओं से ऊपर उठ कर मानवता के शिखर पर पहुँच गया हो, वासनाओं की गन्दी हवाओं से बच कर आत्मा की पवित्र सुगन्ध से महक रहा हो। महत्ता का गज क्या तू महान् होना चाहता है ? यदि हाँ, तो अपनी इच्छाओं को नियन्त्रण में रख । उन्हें बेलगाम न बढ़ने दे और इधर-उधर न भटकने दे। मनुष्य की महत्ता इच्छाओं का दमन करने में है, उनका गुलाम बनने में नहीं। महत्ता के पथ पर आने से पहले अपनी व्यक्तिगत वासनाओं-इच्छाओं पर नियन्त्रण करना आवश्यक है । अमर - वाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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