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________________ महामानव महानता की पगडंडी साधारण मानव वातावरण से बनते हैं । परन्तु, महामानव वातावरण को बनाते हैं ! समय और परिस्थितियाँ उनका कदापि निर्माण नहीं करतीं, परन्तु वे समय और परिस्थिति का निर्माण करते हैं । महामानव की परिभाषा ही है, 'युग का निर्माता ।' महामानव की परिभाषा मनुष्य एक ओर महान् होना चाहता है, दूसरी ओर संकटों से डरता है । विपत्तियों से भय खाता है । तूफानों से बचना चाहता है । यह जीवन की विचित्र विसंगति है ! महानता की पगडंडी फल-फूलों से लदे उद्यानों में से होकर नहीं जाती । वह तो जाती है काँटों में से, झाड़-झंखाड़ों में से, चट्टानों और तूफानों में से । यह वह पगडंडी है, जहाँ मृत्यु, अपयश तथा भयंकर यातनाएँ क्षण-क्षण पर आह्वान करती रहती हैं । और जब आप अपने लक्ष्य पर पहुँच जाएँ, हो सकता है, फिर भी काँटे ही मिलें । एक तत्त्ववेत्ता ने कहा है "प्रत्येक महापुरुष पत्थर मारे जाने के लिए है । उसके भाग्य में ही बदा होता है ।" महामानव : Jain Education International For Private & Personal Use Only ४३ www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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