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मानवता
चौराहा
मानव विश्व के चौराहे पर खड़ा है। वह जिधर चाहे, जा सकता है। जो कुछ चाहे,बन सकता है । जो मनुष्य बन कर रहेगा, वह स्वर्ग और मोक्ष की ओर बढ़ेगा। और, जो मनुष्यत्व से गिर जाएगा, वह नरक या पशु-गति की राह पकड़ेगा।
पशु, मनुष्य, देव और देवाधिदेव
जो विकारों का दास है, वह पशु है। जो विकारों को जीत रहा है, वह मनुष्य है । जो विकारों को अधिकांश में जीत चुका है, वह देव है, और जो विकारों को पूर्णतः जीत चुका है, सदा के लिए जीत चुका है, वह मनुष्य होकर भी देवताओं का भी देवता है, देवाधिदेव है, विश्व-विजेता है।
मनुष्य ही भगवान् है
श्रमण भगवान् महावीर के सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति ईश्वर है, परमात्मा है, ब्रह्म है. सिद्ध है, बुद्ध है, जिन है, यदि वह अपने-आपको पहचान ले,संवार ले, साफ कर ले और पूर्ण बनाले !
मानवता।
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