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जीवन और मृत्यु
कुछ दिनों सांस लेने का नाम जीवन नहीं है, और इस धकधक का रुक जाना मृत्यु नहीं है। जीवन का अर्थ है-विश्व को अपने अस्तित्व का अनुभव कराना। ईंट - पत्थरों के ढेर खड़े करके अथवा दूसरों का शोषण करके नहीं, किन्तु दूसरों के लिए प्राणों का बलिदान करके । प्रत्येक सांस दूसरे के लिए लेना सीखिए। जिस दिन आपने सिर्फ अपने लिए ही श्वास लेने प्रारम्भ किए, वही मृत्यु का दिन है।
अहिंसा की ऊर्जा
वस्तुतः जो सूक्ष्म है, यदि उसे स्थूल बना दिया जाता है, तो उसकी आस्मा, ऊर्जा समाप्त हो जाती है। यही बात अहिंसा के सम्बन्ध में है। अहिंसा बाह्य व्यवहार का स्थूल विधि - निषेध मात्र नहीं है, वह तो अन्तश्चेतना का एक सूक्ष्म भाव हैं । परन्तु, दुर्भाग्य से उसका सूक्ष्म भाव क्षीण - क्षीणतर होता गया और उसे व्यवहार का दिखाऊ स्थूल विधि - निषेध का रूप दे दिया गया। फलतः अहिंसा की ऊर्जा एक प्रकार से समाप्त हो गई।
यदि अहिंसा की पुनः प्राण - प्रतिष्ठा करनी है, तो हम उसे स्थूल व्यवहार की क्षुद्र परिधि से मुक्त कर व्यापक बनाएँ और जीवन की सूक्ष्म अनुभूति एवं हृदय की गहराई तक अवतरित करें।
अमर - वाणी
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