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आँखोंवाले को खुश करो, उसके कन्धे पर हाथ रखकर पीछे-पीछे हो लो। हाँ, खड़े मत रहो, चलो अवश्य । यात्रा चलने से ही पूरी होगी। गुरु बनकर चलो या शिष्य,यह आपकी अपनी योग्यता पर है।
सूली और सिंहासन जैन - संस्कृति में सूली से सिंहासन होने की अनेक कहानियाँ आती हैं ! यह एक अलंकार है, जीवन का अलंकार ! संसार का धन, वैभव, स्वजन, परिजन, मान - पूजा आदि जो मिला है–सब सूली है, जीवन के मर्म-स्थल को बींध कर रख देने वाली इस सूली पर चढ़कर वही सुख पाएगा, जो सूली से सिंहासन बनाने की कला जानता है ! जीवन की सूली पर सुदर्शन की तरह चढ़ो, उसे सूली से सिंहासन बनाओ। ममता की नुकीली नोक को तोड़ डालो। अपनी समस्त उपलब्ध शक्तियों को जग - हित के पथ पर निछावर कर दो । जहाँ 'मैं' और 'मेरा' है, वहाँ जीवन सूली है और जहाँ 'हम' और 'हमारा' है, वहाँ वही जीवन सिंहासन है।
जीवन का रहस्य : गिरकर उछलना वह जीवन ही क्या, जिसे चोट खाकर दूना उत्साह और वेग न मिले ! निर्भर पत्थर से टकरा कर दूना वेग प्राप्त करता है। वह देखिए, रबड़ की गेंद भूमि से टकरा कर कितना ऊपर उछलती है ! प्रत्येक विघ्न-बाधा एवं चोट मनुष्य को ऊँचा उठाने के लिए है। यह जीवन का रहस्य क्या कभी मनुष्य की समझ में आएगा ?
कुतुब मीनार से जब मैं दिल्ली के पास कुतुब मीनार की आखिरी मंजिल पर चढ़ा, तो नीचे के ताँगे,मोटर और मनुष्यों के विभिन्न स्वर, जो नीचे
अमर वाणी
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