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जो लोग कर्मक्षेत्र में अधूरे मन से उतरते हैं, उसमें रस नहीं लेते, उसमें प्रतिभा का प्रकाश नहीं फेंकते, वे किसी भी उत्तरदायित्वपूर्ण पद को पाने की क्षमता नहीं रखते । मानव - संसार में एक पुरानी कहावत है कि 'जो रोता जाता है, वह अवश्य मरे की खबर लाता है !' हाँ, तो आप कर्तव्य के मोर्चे पर रोते हुए न जाइए ! हरगिज, न जाइए। हँसते जाओ, हँसाते जाओ, हँसते आओ, हँसाते आओ-सफलता का यही मूल - मन्त्र है, कृपया इसे भूलिए नहीं।
वीर और कायर
वीर और कायर में क्या अन्तर है ? सिर्फ एक कदम का । वीर का कदम जहाँ आगे की ओर बढ़ने में होता है, कायर का कदम पीछे की ओर भागने में होता है।
सिद्धि और प्रसिद्धि
मानव की सबसे बड़ी भूल यह है कि वह जितना प्रयत्न प्रसिद्धि पाने के लिए करता है, उतना सिद्धि पाने के लिए नहीं करता ! बिना सिद्धि ( सफलता ) के प्रसिद्धि (ख्याति) प्रथम तो मिलती नहीं है ! यदि कभी किसी कुचक्र से मिल भी जाती है, तो वह अधिक ठहर नहीं सकती। इतना कच्चा रंग है उसका ! अतएव जीवन की साधना में साधक को पहले सिद्ध होना चाहिए ! प्रसिद्ध होने की क्या चिन्ता ? सिद्ध हुए, तो प्रसिद्ध होना ही है ।
स्वयं बुद्ध या बुद्ध - बोधित अपनी आँखों में प्रकाश हो, तो सावधानी के साथ अपने आप तीर की तरह सीधे चलो। क्यों किसी की अँगुली पकड़ने का इन्तजार हो । यदि अपनी आँख में रोशनी न हो, तो किसी प्रकाशवान्
जीवन की कला :
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