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अपने आस - पास, सेवा का एक छोटा - मोटा केन्द्र बनालो और उपलब्ध साधनों के साथ जन-सेवा में जुट जाओ।
दुर्भाग्य से यदि सेवा की बुद्धि न हो, अथवा सेवा कर सकने की स्थिति न हो, तो किसी की अप - सेवा तो न करो, किसी को कष्ट तो न पहुँचाओ। यदि तुम किसी को हँसा नहीं सकते, तो किसी को रुलाओ तो मत ! किसी को आशीर्वाद नहीं दे सकते, तो किसी को श्राप तो न दो, गाली तो न दो !
दिव्य अमृत ___ कभी रुद्र कहा जाने वाला देव शिव क्यों हो गया ? कल्याण एवं मंगल का महादेव कैसे हो गया ? अमृत प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन करते समय सर्व प्रथम विष निकला। मंथन अर्थात् संघर्ष, द्वन्द्व । संघर्ष में सर्व प्रथम विष आता है। वह विष समग्र विश्व को मृत्यु के घाट उतार देने के लिए उद्यत था, अतः मंथन करने काले पौराणिक देव - दानव सभी भयभीत । शिव ही थे, जिन्होंने लोक - कल्याणार्थ सहर्ष विष को पी लिया, और पचा गए । और रुद्र सही अर्थ में शिव हो गए। यह शिव की,अहिंसा की, लोक-रक्षण की दिव्य - भावना का पौराणिक ही सही, किन्तु है अनुपम उदात्त उदाहरण । ऐसे शिव, महादेव अपेक्षित हैं- हर परिवार में, हर समाज में, हर धर्म में, हर राष्ट्र में, ताकि सब ओर अबाध गति से फैलता जा रहा घृणा, विग्रह, विद्वेष का हलाहल विष समाप्त हो
और परस्पर मैत्री, करुणा, सहयोग एवं सेवा का दिव्य अमृत सबको प्राप्त हो।
सत्यं, शिवं, सुन्दरम् :
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