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प्रेम और मोह
प्रेम और मोह दोनों दो अलग-अलग चीजें हैं। दोनों को एक समझना भारी भूल है । प्रेम आत्मा को विकसित करता है, विराट बनाता है और मोह आत्मा को संकुचित करता है। प्रेम निष्कामभावना की शुद्ध स्नेहानुभूति है, तो मोह स्वार्थ की दूषित अनुरक्ति!
प्रेम
प्रेम क्या है ? प्रेम हृदय की वह तरंग है, जो शत्रुता से मित्रता की ओर, क्षुद्र - व्यष्टि से विराट् - समष्टि की ओर दौड़ती है, और अखिल विश्व को अपनी सहज ममता के द्वारा आत्मसात् कर लेती है।
राम की उदारता
भारतीय इतिहास कहता है कि जब विभीषण सर्व-प्रथम राम से मिले, तो राम ने उसका 'लंकेश' कहकर स्वागत किया। पास बैठा हुआ एक बानर मुस्कराया और बोला “यदि रावण सीता को लौटा दे तो फिर उसका कहाँ राज्य होगा ?" राम ने गम्भीरता से उत्तर दिया- “कोई आपत्ति नहीं। तब मैं भाई भरत को विभीषण के लिए अयोध्या का सिंहासन छोड़ने के लिए कहूँगा।"
यह है भारतवर्ष का राम ! क्या हम अब भी कभी इतनी ऊँचाई पर चढ़ने का प्रयास करेंगे? ऊँचे जीवन,समेटने से नहीं,बल्कि उदारता पूर्वक बाँटने से बनते हैं ।
दिव्य सन्देश
सब से अच्छी
बात तो यह है कि तुम जहाँ रहते हो, वहाँ
अमर वाणी
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