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________________ समाज - सूत्र का रहस्य आप इस प्रकार प्रकट करते हैं " समस्त मानव-जीवन एक ही नाव पर सवार है । यहाँ सबके हित और अहित बराबर हैं । यदि पार होंगे तो सब पार होंगे और यदि डूबेंगे तो .......यदि मानव जाति व्यक्तिगत स्वार्थों के आगे झुक गई, तो बर्बाद हो जाएगी । व्यक्तिगत स्वार्थों से ऊपर उठे बिना कहीं भी गुजारा नहीं ।" इस समय परिस्थिति यह है कि नाव के एक कोने में बैठा हुआ व्यक्ति चाहता है कि दूसरे कोने वाला डूब जाय और इसके लिए दूसरे कोने में छेद करने का प्रयत्न कर रहा है । उसे समझना चाहिए कि छेद कहीं हो, सारी नौका डूबेगी, एक कोना नहीं । समस्त मानव समाज एक शरीर है । रोग किसी अंग में प्रकट हो, कष्ट का अनुभव सारे शरीर को करना होगा । - संघ के जौहरियों से वे कहते हैं- "जौहरियो ! इन पत्थरों को रत्न समझ कर बहुत भटक लिए । पागल हो लिए। अब जरा इन जीते जागते मानव देहधारी हीरों की परख करो । दुःख है कि तुम कंकर पत्थर परखते रहे और इधर न जाने कितने अनमोल रत्न धूल में मिल गये ।" नेता होने की अपेक्षा नेता बनाने में सक्रिय भाग लेना कितना बड़ा गौरव है ?" विज्ञान के वर्तमान विकास की ओर लक्ष्य करके उन्होंने कहा है — "विज्ञान की तेज धार से प्रकृति की छाती को चीर कर क्या निकाला ? विष, विष और विष ! वह चला था अमृत की तलाश में, परन्तु ले आया विष ! भारत की नारी को लक्ष्य करके मुनि श्री का कथन कितना मार्मिक है - "भारत की नारी तप और त्याग की मोहक मूर्ति है, शान्ति और संयम की जीवित प्रतिमा है । वह अन्धकार से घिरे संसार में मानवता की जगमगाती तारिका है । वह मन के कण-कण [ १६ ] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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