________________
नेता नहीं, नेता के निर्माता बनिए आज का प्रत्येक मनुष्य अधिकार चाहता है, पद चाहता है, राजा होना चाहता है। इसके लिए कितना संघर्ष है, कितना लड़ाई-झगड़ा है, परन्तु राजा बनने की अपेक्षा राजा बनाने का अधिकार बड़ा है, सब से बड़ा पद है । क्या मनुष्य इस पद का गौरव प्राप्त नहीं कर सकता ? नेता होने की अपेक्षा,अच्छा है नेता बनाने में सक्रिय भाग लेना, कितना बड़ा गौरव है ।
आचार सब से बड़ा प्रचार
आज कल धर्म-प्रचार की धूम-सी मच रही है । जिधर देखिए, उधर ही प्रचार का तूफान उठ रहा है, कोलाहल हो रहा है । चन्दे-चिट्टे उगाए जा रहे हैं, और सोने-चांदी के गोले फेंक कर मार्ग साफ किया जा रहा है। परन्तु, धर्म - प्रचार का सर्वश्रेष्ठ मार्ग उसे अपने आचरण में उतार लेना है, उसे अपने जीवन व्यवहार में एकरस बना लेना है।
शिथिलाचार और संघ
जैसे एक गन्दी मछली तालाब को गन्दा कर देती है, उसी प्रकार एक आचार - हीन भ्रष्ट साधक समस्त समाज को गन्दा और बदनाम कर देता है। संघ के अधिनायकों को इन पतितों से सतर्क रहने की आवश्यकता है।
गृहस्थ
जैन-धर्म में गृहस्थ का पद कम महत्त्व का नहीं है । वह यदि पुरुष है, तो साधुओं का पिता है, यदि स्त्री है, तो साधुओं की माता है । जो सर्वश्रेष्ठ साधु-संघ के भी माता-पिता हैं, उन्हें अपने
१४०
अमर वाणी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org