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सेवा और सत्संग का लाभ उठाओ। पवित्र घृत से भरा हुआ दीप भी है, बत्ती भी है, पर प्रकाश नहीं दे रहा है। प्रकाश की योग्यता है, पर वह व्यक्त नहीं ! उसे व्यक्त करना है, तो किसी प्रदीप्त दीपक से भेंट करनी होगी, स्पर्श - दीक्षा लेनी होगी। आत्मा में प्रकाश शक्ति है, परन्तु वह व्यक्त नहीं है। उसे व्यक्त करने के लिए किसी साधक की चरण-शरण में पहुँचना ही होगा । ज्यों ही स्पर्शदीक्षा की भावना से दीक्षित होंगे, त्यों ही आपका अन्तर्जगत् आध्यात्मिक ज्योति से जगमगा उठेगा।
सत्संग गंगा की धार में पड़ कर गन्दा नाला भी गंगा बन जाता है। चन्दन के आस-पास खड़े हुए वृक्ष भी सुगन्ध से महकने लगते हैं। कहते हैं, पारस के स्पर्श से लोहा भी सोना बन जाता है । संग का बड़ा प्रभाव है ? मनुष्य जैसा संग करता है, वैसा ही बन जाता है। वह देखिए संगतरा क्या सूचना दे रहा है ? उसका संकेत है कि मैं मिट्ठा का पौधा नारंगी के संग जोड़ा जाकर स्वयं नारंगी का वृक्ष बन गया हूँ, और संगतरे के नाम से सूचना दे रहा हूँ कि मैं संग से तर गया हूँ । क्या मानव इन उदाहरणों पर कुछ विचार करेगा ?
जौहरियों से
जवाहरात के पारखी जौहरियो ! इन कंकर-पत्थरों को रत्न समझ कर बहुत दिन भटक लिए, पागल हो लिए। अब जरा इन जीते-जागते मानव-देहधारी हीरों की भी परख करो। दुःख है कि तुम जड़ कंकर-पत्थर परखते रहे और इधर न जाने कितने अनमोल रत्न धूल में मिल गए। “वह धनी, धनी नहीं, पापी राक्षस है, जो सेवा करने योग्य धन रखते हुए भी किसी को भूख से बिलबिलाता हुआ देखता रहे, और कुछ-भी न करे !"
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