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आचरण में कितना पवित्र, उज्ज्वल और महान् होना चाहिए, यह बहुत गम्भीरता के साथ सोचने की बात है।
रोओ मत, हँसो
आज मुझे एक धनी सेठ मिले । सट्टे में धन के चले जाने पर रो रहे थे । क्या मैं उनसे पूछ लू कि 'आपने कभी किसी को रोटी का दान दिया है ? किसी गरीब को तन ढाँपने के लिए खद्दर का टुकड़ा अर्पण किया है ? किसी रोते हुए के आँसू पोछे हैं ? आपके महल की शीतल छाया में क्या कभी किसी को दो घडी खड़े होने का सौभाग्य मिला है ? देश या समाज की भूखी मरती संस्थाओं ने आपके धन से क्या कभी थोड़ा-बहत जीवन पाया है ? आपके धन ने आपका यह लोक या परलोक सुधारा है ? 'यदि यह सब नहीं हुआ है, तो फिर उस धन के लिए क्यों रो रहे हो ? बिलख क्यों रहे हो ? वह धन नहीं था, जहर था ! चला गया, तो ठीक हुआ ! अन्यथा वह तुम्हारी आत्मा की हत्या कर देता !
दान के चार प्रकार दानार्थी के पास स्वयं पहँच कर सम्मान के साथ दान देना, उत्तम दान है।
अपने यहाँ बुला कर दान देना, मध्यम दान है। माँगने पर दान देना, अधम दान है। किसी सेवा के बदले में दान देना, अधमाधम दान है।
संख्या नहीं, गुण भगवान् महावीर ने और उन्हीं के पथ के यात्री दूसरे मनीषी आचार्यों ने एकमात्र गुणी को महत्त्व दिया है, संख्या को नहीं। वन में एक सिंह का महत्त्व अधिक है, या हजारों गीदड़ों का ?*
संघ :
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