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मनुष्य के मन में स्थित प्रेम की बूंद को सागर का रूप देने में । प्रेमाचरण का विराट रूप ही धर्म है
जैन धर्म कहता है- 'सव्व-भूयप्प-भूयस्स' अर्थात् विश्व के सब प्राणियों को अपनी आत्मा के समान समझो, प्राणिमात्र में आत्मानुभूति का ज्ञान करो।
धर्म का स्वरूप
तलवार के सहारे फैलने वाला धर्म, धर्म नहीं हो सकता। और वह धर्म भी धर्म नहीं हो सकता, जो सोने - चाँदी के चमकते प्रलोभनों की चकाचौंध में पनपने वाला हो। सच्चा धर्म वह है, जो भय और प्रलोभन के सहारे से ऊपर उठ कर तपस्या और त्याग के, मैत्री और प्रेम के उच्चात्युच्च भावना-शिखरों का सर्वांगीण स्पर्श कर सके।
धर्म जोड़ता है, तोड़ता नहीं
जो धर्म किसी के यहाँ भोजन कर लेने से या किसी को छु लेने मात्र से अपने को अपवित्र मानता हो, मनुष्य - मनुष्य में घृणा का भेद-भाव रखता हो, वह धर्म नहीं, अधर्म है, महान् अधर्म है। धर्म का काम मानव - समूह की बिखरी कड़ियों को जोड़ना है, तोड़ना नहीं।
सत्य
सत्य एक जलती हुई चिनगारी है । वह लाखों मन असत्य के काठ को जला कर भस्म कर सकती है। सत्य एक दिव्य ज्वाला है, जिससे समस्त मल जलकर नष्ट हो जाता है । जीवन दिव्य प्रकाश से भर जाता है जिससे !
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अमर - वाणी
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