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________________ मानव-प्रेम अखिल विश्व के प्राणियों में आत्मानुभूति प्राप्त करना ही सबसे बड़ा धर्म है, सबसे बड़ी मानवता है । अपने साढ़े तीन हाथ के मानवाकार मृत्पिड में ही आत्मानुभूति होना, और अन्यत्र न होना, समस्त झगड़ों की जड़ है। अधिकतर संकट और आपत्तियाँ उन्हीं लोगों से पैदा होती हैं, जो दूसरे को अपना नहीं समझते, और न दूसरों से निश्छल प्रेम करना ही जानते हैं । धर्म और वेश भूषा अरे ! तुम यह क्या कर रहे हो ? बाँध रहे हो, चोके - चूल्हे में घेर रहे हो, पवीतों पर टाँग रहे हो ? क्या तुम्हारा तुम अनन्त, असीम धर्म को सान्त, ससीम, बाह्य चिह्नों एवं क्रियाकाण्डों में अवरूद्ध नहीं कर सकते । धर्म को दाढ़ी - चोटी से छापे - तिलक तथा यज्ञोधर्म इन्हीं बातों में है ? धर्म धर्म विश्व बन्धुत्व धर्म किसी अमुक - विशेष क्रिया - काण्ड में नहीं है । वह है, १०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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