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और हम दूसरों का दुःख दूर करने के लिए उत्साहित होकर सत्कर्म में लग जाते हैं।
ईश्वर या देवदूतों के नाम पर मनुष्य न जाने कितने पाप कर्म करता है, न जाने कितने अपराध, अन्याय, अत्याचार करता है ? क्योंकि वह समझता है कि उसका रक्षक तो है ही। फिर भला उसे डर क्या ? ईसा ने कहा- " मैं दुनिया के पापात्माओं का उद्धार करने के लिए सूली पर चढ़ रहा हूँ।" मुस्लिम धर्म कहता है— "खुदा जब कयामत के दिन सब आत्माओं का इन्साफ करेगा. तो पास बैठे हुए मुहम्मद से पूछेगा-बता, तेरी रजा क्या है ? और मुहम्मद जिसकी सिफारिश कर देंगे, वह अपराधों से बरी कर दिया जाएगा । और वह सिफारिश किसकी करेगा ? उसकी जो ईश्वर और पैगम्बर पर ईमान ले आएगा।" कृष्ण ने भी गीता में कहा है-"मैं तुझे सब पापों से मुक्त कर दूंगा, तू किसी तरह की चिन्ता न कर"
'अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:।' विश्व में श्रमण - संस्कृति के उन्नायक महावीर और बुद्ध ही ऐसे महापुरुष हैं, जो किसी प्रकार का अनुचित आश्वासन नहीं दे गए हैं। उन्होंने यही कहा है कि "ईश्वर या देवदूत कोई भी ऐसा नहीं है, जो तुम्हें पापों से मुक्ति दिला सके । जो कर्म किए हैं, वे अवश्य भोगने होंगे। एभ मात्र तुम्हारा अपना शुद्ध आचरण ही तुम्हारी रक्षा कर सकता है।"
श्रमण - संस्कृति का कर्मवाद का यह आदर्श साधक को, सहृदय भक्त को, पापों के फल से नहीं, अपितु पापों से ही बचने की प्रेरणा देता है । क्योंकि दुष्कर्म करोगे, तो उसका परिणग्मफल तो अवश्य मिलेगा ही। यदि कटुफल नहीं चाहते हो, तो दुष्कर्म नहीं, सत्कर्म करो। कर्मवाद
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