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आत्मदेवो भव
तू स्वयं ईश्वर है ओ मानव ! तेरा सत्य तेरे अन्दर है बाहर नहीं ! तू जीवित ईश्वर है। अपने-आपको जरा कस कर रख । फिर, जो चाहेगा, हो जाएगा।
सारा दायित्व अपने ऊपर
तुम किस भाग्य विधाता का सहारा खोज रहे हो ? क्या तुम्हारे अतिरिक्त कोई और भी तुम्हारे भाग्य का निर्माण कर सकता है ? तुम्हारे जीवन के पृष्ठ मन चाहे ढंग से उलट सकता है ? तुम खड़े हो, अपने पैरों पर, तुम आगे बढ़ो अपने पैरों पर ! तुम्हारे पैर ही तुम्हें मंजिल पर ले जा सकते हैं। जो विचारोगे, वही बन जाओगे। स्वर्ग और नरक तुम्हारे ही अन्दर है। दार्शनिक भाषा में उत्तम विचार का नाम स्वर्ग है और निम्न विचार का नाम नरक है।
आत्मा ही परमात्मा है
जैन धर्म के अनुसार आत्मा, शरीर और इन्द्रियों से पृथक् है । मन और मस्तिष्क से भी भिन्न है। वह जो कुछ भी है, इस मिट्टी आत्मदेवो भव:
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