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________________ के ढेर से परे है। वह जन्म लेकर भी अजन्मा है और मर कर भी अमर है। ___कुछ लोग आत्मा को परमात्मा या ईश्वर का अंश कहते हैं। परन्तु, वह किसी का भी अंश - वंश नहीं है, किसी परमात्मा का स्फुलिंग नहीं है। वह तो स्वयं पूर्ण परमात्मा, विशुद्ध आत्मा है। आज वह बेबस है, बे - भान है, लाचार है, परन्तु जब वह मोहमाया और अज्ञान के परदों को भेदकर, उन्हें छिन्न - भिन्न करके अलग कर देगा, तो अपने पूर्ण परमात्म स्वरूप में चमक उठेगा ! अनन्तानन्त कैवल्य - ज्योति जगमगा उठेगी उसके अन्दर ! कस्मै देवाय विद्या, विद्या के लिए कुछ अर्थ नहीं रखती। विद्या का महत्त्व चरित्र - बल के विकास में है। भारत के एक ऋषि ने कहा है कि "जो लोग केवल विद्या के लिए ही विद्या की पूजा करते हैं, वे अन्धकार में जाते हैं।" अपना आदर अपने हाथ तुम शिकायत करते हो कि कोई कदर नहीं करता, कोई पूछता नहीं। लोगों से झगड़ने और शिकायत करने से क्या लाभ ? तुम पहले स्वयं अपने को योग्य बनाओ, फिर जो चाहोगे, हो जाएगा। जवाहर का काम पहले अपनी योग्यता प्रमाणित कर देना है, फिर उसके लिए सोने की अंगूठी का चमकता हुआ सिंहासन अपने-आप तैयार है। जीवन क्यों और किसलिए ? पहाड़ की गहरी गोद में, जहाँ कोई न पहुँच सके, गुलाब का अमर वाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003414
Book TitleAmar Vani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size6 MB
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