SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ : आदर्श कन्या हैं। महाभारत युद्ध की पृष्ठभूमि में यदि सूक्ष्म निरीक्षण से देखा जाए, तो भीमसेन और द्रौपदी की अनुचित हँसा ही छिपी मिलेगी। अन्धे घृतराष्ट्र के पुत्र, दुर्योधन की द्रौपदी ने हंसो में यही कहा था, कि अन्धे के अन्ध ही पैदा हुए । बस, उसी से महाभारत + खून को नदियाँ बह गई ! अतः हँसी मनुष्य के लिए आवश्यक है, यह सही है। परन्तु इस की भी एक सीमा होनी चाहिए। हाँ, तो पुत्रियो ! किसी की हंसी-दिल्लगी करते समय समझ-बूझ से काम लो । तुम्हारो हँसी-दिल्लगो शुद्ध हो । उसमें गन्दापन न हो, उससे किसी को हानि न हा । हँसी-दिल्लगी स्वयं कोई खराब चीज नहीं है । यह जीवन के लिए लाभदायक गुण है । परन्तु हँसी-दिल्लगी सीमा के अन्दर रहकर ही करनी चाहिए । सीमा से बाहर कोई भी काम क्यों न हो, उससे हानि ही होती है। हँसी का समय : हंसी-दिल्लगी आनन्द के लिए की जाती है । अतः हँसी के लिए समय, और असमय का ध्यान रखना आवश्यक है। कभी ऐसा होता है कि सबके सामने हँसी करने से मनुष्य लज्जित हो जाता है और अपने मन में गांठ बांधकर रख लेता है। आगे चलकर उसका भयंकर परिणाम निकलता है। सम्मुख साथी प्रसन्न हों अच्छी स्थिति में हो, तभी हँसी-दिल्लगी आनन्द पैदा करती है । यदि वह किसी खराब स्थिति में हो, तो उस असमय की हँसी-दिल्लगी के आनन्द के बदले क्रोध ही उत्पन्न होगा। बहुत-सी लड़कियां अधिक चुलबुली होती हैं । वे अपनी साथिन लड़कियों की हमेशा हँसी उड़ाया करती हैं। किसी के रंग-रूप की हँसी करती हैं, तो किसी के चाल-ढाल की हँसी करती हैं। किसी की चपटी नाक पर हँसती हैं, तो किसी की ऊँची नाक की आलो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy