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________________ 18 हास्य की मधुरिमा नारी के सोन्दर्य व स्वास्थ्य की अभिवृद्धि करती है । सभी ने यह स्वीकार किया है, किन्तु उनका कहना हैं, हास्य की सीमारेखा अवश्य होनी चाहिए | हँसी - दिल्लगी हँसना कोई बुरा काम नहीं है । मनुष्य की जिन्दगी में हँसना, एक बड़ा गुण है । इतने बड़े विराट् संसार में हँसना एक मनुष्य को ही आता है, और किसी पशु-पक्षी को नहीं। क्या तुमने कभी किसी गाय-भैंस आदि पशु को हँसते देखा है ? नहीं देखा होगा । पशु-पक्षी हँसना जानते ही नहीं। प्रकृति की ओर से यह अनुपम भेंट एक मात्र मनुष्य को ही मिली है । वह मनुष्य ही क्या जिसका मुँह हमेशा उदास रहता है । जो बात-बात पर मुंह चढ़ा लेता है - बड़बड़ाने लगता है, वह मनुष्य नहीं राक्षस है । जिसके मुख पर सदा मन्द- हास्य अठखेलियाँ करता रहता है, वही मनुष्य सच्चा मनुष्य है । वह जहाँ भी रहेगा, वहां निरन्तर आनन्द-मंगल की वर्षा करता रहेगा । हँसी की सीमा : हँसने की भी सीमा है । हँसने के साथ कुछ विवेक और विचार, की भी आवश्यकता है । जिस हँसने में विवेक न हो, विचार न हो वह कभी-कभी महान् अनर्थ का कारण बन जाता है । संसार के इतिहास में बहुत-सी घटनाएं इसी विवेक रहित हंसी के कारण हुई Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
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