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५८ : आदर्श कन्या का सबसे बड़ा भयंकर शत्रु है । आजकल हमारे भारनीय परिवारों में जो अनेक प्रकार के कष्ट तथा रोग दीख पड़ते हैं, उन सबका मूल कारण एक प्रकार से आलस्य ही है। आज घरों में माता और पुत्रियो लड़ती हैं, भाभी और ननद लड़ती हैं, सास और बहू लड़ती हैं । यह लडाई का बाजार क्यों गर्म है ? इसका कारण मेरे विचार में तो आलस्य ही है । क्योंकि जो मनुष्य कोई काम नहीं करता, जो चुपचाप निठल्ला बैठा अपना समय व्यतीत करता है, उसका स्वभाव दुर्बल हो जाता है, वह दूसरों को देख कर कुढ़ा करता है. और दूसरे उसको देखकर कढ़ते है। बस, झगड़ने के लिए और किस बात की जरूरत है ? यह कुढन ही मनुष्य मे मनुष्यता छीन लेती है । द्विभुजा परमेश्वर :
इसके विपरीत जिस घर में सब स्त्रियां अपने-अपने काम में लगा रहती हैं, काम करने से जी नहीं चराती हैं, एक काम करने को दृसरी तैयारी रहती है, और प्रत्येक काम में परस्पर प्रेम तथा स्ने की धाराएँ वहती हैं, उस घर में किसी प्रकार का दुःख नहीं होता उस घर का कलह एक बार ही दूर हो जाता है। और परिवा बिल्कुल हरा-भरा, सुखी एवं समृद्ध हो जाता है। एक आचार्य व कहना है-"दो हाथ वाला मनुष्य परमेश्वर होता है" द्विभुजा पर श्वरः ।" हाँ तो जिस घर में तुम जैसी दो हाथों वाली अनेक भगव हो, वहाँ क्या कमी रह सकती है ? जरूरत है हाथों से काम लेने के
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