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________________ मनुष्य का शत्रु आलस्य : ५७ गृह दवियाँ न बनाती हों । न स्वयं भोजन बनाना और न परोसना, इससे पारिवारिक प्रेम का अभाव सूचित होता है । यदि गृह-देवियाँ भोजन बनाती हैं, तो उसमें क्या लाभ है - ( १ ) भोजन स्वादिष्ट बनेगा। क्योंकि नारी अपने हाथों से भोजन बनाएगी, तो उसमे अपनत्व होगा ! अपनत्व अपनों को ही हो सकता है, नौकरों को नहीं । (२) भोजन पवित्र होगा - शुद्ध होगा । (३) नारी प्रेम के साथ भोजन परोसेगी, तो उसमें नेसर्गिक रूप से मिठास उत्पन्न हो जाएगी । ( ४ ) नारी स्वयं भोजन बनाएगी, तो गुरुजनो के आ जाने पर उन्हें विधि-पूर्वक गुरु-भक्ति से भाजन दे सकती है । इन सब बातों की अपेक्षा नौकर से नहीं की जा सकती है। नारी भाजन बनाएगी, तो उसके प्रतिफल में पसे की अपेक्षा नहीं करेगी । नारी के द्वारा बनाया गया भोजन, प्रेम का भोजन है । आलाय त्यागो : बहुत-सी लड़कियाँ काम से जी चुराया करती हैं। माता या ओर कोई जब किसी काम के लिए कह देते हैं, तो बड़बड़ाने लगती हैं । कितनी ही बार तो कामा को इसलिए लड़कियाँ बिगाड़ भी देती हैं, कि फिर हमसे कोई काम करने के लिए न कहें, अच्छी लड़कियों का काम तो यही है, कि वे जो भी काम करे, रस लेकर करें, घर के छोटे-मोटे काम को स्वयं कर लेना कुछ बुरा नहीं। इससे बढ़कर और सुख क्या हो सकता है, कि तुम्हें घर की सेवा करने का लाभ मिलता है। काम करना कोई निन्दा की बात नहीं है । सीता और द्रापदी जंसी महारानियाँ भी घर का काम खुद किया करती थीं। तुम्हें भी उन्हीं के कदमों पर चलना चाहिए । घर का कोई भी बड़ा व्यक्ति तुमसे काम करने की कहे, तो सहर्ष उसका कार्य कर दो ! मनुष्यता न खोओ : अन्त में मैं फिर कह देना चाहता हूँ, कि - आलस्य, मानब जाति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
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