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________________ व्यवस्था की बुद्धि : ४६ इधर लड़का चिल्ला रहा है, उधर घर की सब स्त्रियाँ दियासलाई ढूंढने में लगी हैं। चिल्लाते हुए लड़के के पास कोई यह भी कहने को नहीं है कि बेटे ! चुप रहो, अभी अच्छे हो जाओगे।" स्त्रियां आपस में झगड़ती हैं, एक-दूसरे पर गजंती हैं चिल्लाती हैं, परन्तु इससे लाभ कुछ भी नहीं। एक छोटी-सी बात के लिए लोग इतने हैरान हैं, कि कुछ कहा नहीं जा सकता । कोई पूछे तो उत्तर भो क्या दें, कि दियासलाई नहीं मिलती। यदि पहले से ही सावधानी के साथ दियासलाई रक्खी गई होती, यदि दियासलाई रखने के लिए कोई स्थान नियत होता, तो इतनो झंझट क्यों बढ़ती? स्थान निश्चित कीजिए? जिस घर में सब चीजों को रखने के लिए अलग-अलग स्थान नियत है, वहाँ झट-पट यह मालूम हो जाता है, कि कौन-सी चीज घर में है, और कौन-सी चीज नहीं है ? कौन चोज बाजार से मंगानी है और क्या नहीं। जहाँ यह व्यवस्था नहीं होतो, वहाँ बहुत बुरा परिणाम होता है । कितनी ही चीजें बार-बार मंगाकर अधिक से अधिक संख्या में भरलो जाती हैं और कितनो ही जरूरी काम की चोजें एक भी आने नहीं पाती। घर क्या, कंजड़ी का गल्ला हो जाता है। इस प्रकार के निपट अँधेरे में धन का कितना अधिक अपव्यय होता है ? जरा विचार खो कीजिए ? इसलिए मैं कहता हूँ. कि तुम चीजों के रख रखाने में बहत अधिक बुद्धि और स्फति रक्छो । सब चीजों को ठीक-ठीक स्थान पर रखने का प्रयत्न करो। अपने कपड़े-लते, गहने आदि की बातों में भी यही व्यवस्था रखनी चाहिए। अधिक क्या, खाने-पीने, सोने, बोलने, उठने-बैठने, अादि सभी कामों में संगम और व्यवस्थित होने की आवश्यकता है। मन को हमेशा सुलझा हुआ एकाग्र रखना चाहिए। मन कहीं है, चीज कहीं रख रही है, यह अपवस्या पैदा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
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