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________________ २० : आदर्श कन्या ६. भोजन बासी नहीं खाना ! १०. बर्तन गन्दे और धूल से भरे हुए नहीं रखना ! ११. भोजन अधिक नहीं लेना, जूठन नहीं डालना आदि ! १२. पाखाना हमेशा साफ रखना ! स्वर्ग और नरक: तुम गृह-लक्ष्मी हो। तुम्हें घर में देवी के समान ही स्वच्छ और पवित्र रहना चाहिए । जो चतुर नारियां, शरीर तथा आस-पास के पदार्थों की स्वच्छता पर बराबर ध्यान देती हैं, वे अपना और परिवार आदि सबका मंगल करती हैं । इनके विपरीत जो अस्वच्छ रहती हैं, आस-पास की वस्तुओं को गन्दा रखती हैं, वे अपने को तथा परिवार को दुखी करती हैं । इतना ही नहीं, निर्दोष पड़ोसियों तक को भी तंग करती हैं। अस्वच्छता का बुरा परिणाम सब पड़ोसियों को, कभी-कभी तो सारे गाँव तक को भोगना पड़ता है। हैजा, प्लेग आदि के बहुत से छुत सम्बन्धी रोग अस्वच्छता के ही कुफल हैं । देखिए एक मनुष्य की जरा-सी असावधानी से व्यर्थ ही असंख्य जीवों की हिंसा हो जाती है। हाँ तो, अस्वच्छता नरक है और स्वच्छता स्वर्ग । स्वच्छता से प्रेम करने वाली कन्याएँ, देश के लिए मंगल कारिणी देवियाँ प्रमाणित हो सकती हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003413
Book TitleAdarsh Kanya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1994
Total Pages120
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Sermon, & Conduct
File Size4 MB
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