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१०८ : आदर्श कभ्या
आदर्श सभ्यता
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केले के छिलके या औरभी कोई ऐसी ही चीज सड़क पर चाहे जहाँ मत डालो । केले के छिलके पर पैर फिसल जाता है, और कभीकभी पथिक सदा के लिए घातक चोट खा बैठता है ।
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भाषण सुनने के लिए किसी सभा में पहुँचो; तो एक दम बीच में उठकर न चली जाओ । याद रखो, वक्ता के लिए यह अपमानजनक व्यवहार है । यदि आवश्यक कार्यवश जाना ही हो, तो चालू भाषण पूरा होने पर और दूसरा भाषण प्रारम्भ होने से पहले ही चुपचाप धीरे से चली जाओ ।
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+ अन्धा, लूला, लंगड़ा, कहना अथवा और भी कोई किसी प्रकार का अंग-हीन या पागल मिले तो उसकी हँसी न उड़ाओ, मजाक न करो, जहाँ तक हो सके उसके साथ अधिक से अधिक आत्मीयता का व्यवहार करो।
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किसी से बात-चीत करते समय 'हो' या 'न' के स्थान पर 'जी' हाँ, जी नहीं आदि बहुत मधुर और शिष्ट शब्दों का प्रयोग करो ।
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