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भगडदत्त
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ताव-च्चिय होइ सुहं जाव न कीरइ पिओ जणो कोवि । पिय-सङ्गो जेण कओ दुक्खाण समप्पिओ अप्पा ॥३७॥ पेरिज्जन्तो उ पुरा-कएहि कम्महि केहिवि वराओ.। सुहमिच्छन्तो दुल्लह-जणाणुराए जणो पडइ ॥३८॥ ता जइ मए समाणं सङ्गं न य कुणसि तरुणि-मण-हरणं । होहं तुह निय-वज्झा फुडं जओ नत्थि मे जीयं ॥३९॥ सो निसुणिऊण वयणं तीए बालाए चिन्तए हियए । मरइ फुडं चिय एसा मयण-महा-जलण-दड्ढङ्गी ॥४०॥ निसुणिज्जइ पयडमिणं भारह-रामायणेसु सत्थेसु । जह दस कामावत्था होन्ति फुडं कामुय-जणाणं ॥४॥ पढमा जणेइ चिन्तं बीयाए महइ संगम-सुहं ति । दीहुण्हा नीसासा हवन्ति तइयाए वत्थाए ।।४२॥ जरयं जणइ चउत्थी पञ्चम-वत्थाए डज्झइ अङ्गं । न य भोयणं च रुच्चइ छट्ठावत्थाए कामिस्स ॥४३॥ सत्तमियाए मुच्छा अट्ठम-वत्थाए होइ उम्माओ । पाणाण य संदेहो नवमावत्थाए पत्तस्स ॥४४॥ दसमावत्थाए गओ कामी जीवेण मुच्चए नूणं । ता एसा मह विरहे पाणाण वि संसयं काही ॥४५॥ परिभाविऊण हियए राय-कुमारेण भाव-कुसलेणं । भणिया सिणेह-सारं सा बाला महुर-वयणेण ॥४६॥ सुन्दरि, सुन्दर-रन्नो सुन्दर-चरियस्स विउल-कित्तिस्स । नामेण अगडदत्तं पढम-सुयं मं वियाणेहि ॥४७॥ कल-यायरिय-समीवं कल-गहणत्थं समागओ एत्थ । पविसिस्सं जंमि दिणे तए वि घेत्तुं गमिस्सामि ॥४८॥ कहकहवि सा मयच्छी वम्मह-सर-पसर-सल्लिय-सरीरा। एमाइ बहु-पयारं भणिऊण कया समासत्था ॥४९॥ सो राय-सुओ तत्तो तीए गुण-रूव-रञ्जिय-मणो हु । निय-निलए संपत्तो चिन्तन्तो संगमोवायं ॥५०॥
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