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13. मिथिला से वैशाली, श्रावस्ती आदि में विचरण कर 27 वाँ चौमास पुनः मिथिला में किया यहाँ गंडकी आदि कितनी ही नदियाँ पार की।
14. मिथिला से पांचाल, श्रावस्ती, अहिच्छत्र, हस्तिनापुर आदि में विहार कर 28 वाँ चौमास वाणिज्य ग्राम में किया। इस वर्ष के लम्बे विहारों में अनेक छोटी-मोटी नदियों के साथ गंगा नदी भी दो बार पार की। 15. वाणिज्य ग्राम से गंगा पार कर अगला 29 वाँ चौमास राजगृह में किया। 16.राजगृह का वर्षावास समाप्त कर चम्पा, पृष्ठ चम्पा आदि नगरों में विहार
करते हुए भगवान् ने सुदूर दशार्णभद्र देश में जाकर दशार्णभद्र राजा को दीक्षा दी। वहाँ से लौटते समय गंगा पार कर विदेह देश के वाणिज्य ग्राम में 30 वाँ चौमास किया।
17. वाणिज्य ग्राम से कोशल- पांचाल, साकेत, काम्पिल्य, श्रावस्ती आदि नगरों में विचरण कर 31 वाँ चौमास वैशाली में किया। इस वर्ष के विहार में भी आते-जाते अनेक नदियों के साथ गंगा महानदी भी दो बार पार की। 18.भगवान् का 32 वाँ चौमास भी वैशाली में ही था। वहाँ से गंगा पार कर मगध प्रदेश में आए, और 33 वाँ चौमास राजगृह में किया ।
19. भगवान् का 34 वाँ चौमास नालन्दा में था । वहाँ से गंगा पार कर विदेह देश में गए, और 35 वाँ चौमास वैशाली में किया।
20. वैशाली से कौशल, पांचाल, सूरसेन आदि सुदूर देशों में भ्रमण किया, और साकेत (अयोध्या), काम्पिल्य, सौर्यपुर, मथुरा आदि में विचरण कर 36 वाँ चौमास मिथिला में किया । यहाँ भी यमुना, गोमती, सरयू आदि अनेक नदियों को पार करने के साथ आते-जाते दो बार गंगा नदी भी पार की।
21. मिथिला से गंगा पार कर मगध में आए, 37 वाँ चातुर्मास राजगृह में किया।
22. भगवान् का 38 वाँ चौमास नालन्दा में था । वहाँ से गंगा पार कर विदेह देश में पधारे और 39 वाँ चौमास मिथिला में किया।
23.भगवान् का 40 वाँ चौमास मिथिला में था । वहाँ से गंगा पार कर मगध में आए। अग्निभूति और वायुभूति गणधर वैभारगिरि पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त हुए, और भगवान् का यह 41 वाँ चौमास राजगृह में हुआ। "
द्वितीय पुष्प
56 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा
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