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________________ उत्तरी बिहार की गंडकी नदी भी एक विशाल जल-बहुल नदी है, जो नेपाल से निकलती है, और वैशाली के पास से होकर पटना के सम्मुख गंगा में मिलती है। वैशाली से वाराणसी लौटते हुए लेखक को भी गंडक नदी नौका से पार करनी पड़ी थी। भगवान् महावीर के जीवन की एक घटना है कि भगवान् ने वैशाली के पास नौका द्वारा जब गंडकी को पार किया तो नाविक ने उतराई का पैसा न मिलने पर भगवान् को वहीं रोक लिया था। उसी समय शंखराज का भानजा 'चित्रकुमार' राजदूत बनकर कहीं जा रहा था, उसने भगवान् को छुड़ाया।” भगवान् महावीर ने 10 वाँ वर्षावास श्रावस्ती में किया था। वर्षावास के अनन्तर सानुलट्ठिय, दृढभूमि, नालुका, सुभोगं, सुच्छेत्ता, मलय, हत्थिसीस, तोसलि, मोसलि, सिद्धार्थपुर आदि नगरों में विहार करते हुए पुनः श्रावस्ती आए और श्रावस्ती से कौशाम्बी, वाराणसी,राजगृह, मिथिला आदि नगरों में भ्रमण कर ग्यारहवाँ वर्षावास वैशाली में किया। पाठक देख सकते हैं-उक्त विहार यात्रा में भगवान् ने बिहार और उत्तरप्रदेश की कितनी ही छोटी-बड़ी नदियाँ पार की हैं और गंगा महानदी को तो इस एक ही वर्ष में दो बार पार किया। एक बार तो श्रावस्ती से कौशाम्बी और वाराणसी आते हुए, क्योंकि ये दोनों नगर श्रावस्ती से गंगा के इस पार दक्षिणी उत्तरप्रदेश में हैं। दूसरी बार कौशाम्बी, वाराणसी, राजगृह से वर्षावास के लिए वैशाली को जाते हुए, चूँकि वैशाली गंगा के उस पार उत्तरी बिहार में है। केवल ज्ञान के बाद गंगा-संतरण और भी कितने ही वर्णन हैं इस प्रकार गंगा आदि नदियों को पार करने के। परन्तु हम साधनाकाल की इन घटनाओं का अधिक विस्तार नहीं देना चाहते। भगवान् महावीर की, केवल ज्ञान के बाद की विहार चर्या, अधिक महत्त्वपूर्ण है। वह एकमात्र धर्म प्रचार की दृष्टि से ही की गई थी, अतः उसका प्रस्तुत लेख के उद्देश्य के साथ मौलिक सम्बन्ध है। विस्तार से तो नहीं, संक्षेप में ही, केवलज्ञानोत्तर तीर्थंकर दशा में गंगा और अन्य नदियों को पार करने के प्रसंग इस प्रकार हैं:1. भगवान महावीर का 13 वाँ वर्षावास राजगह में था। वर्षावास के बाद गंगा-नदी पार कर विदेह देश में गए और 14 वाँ चौमास वैशाली में किया। 2. वैशाली का चौमास पूर्ण होने के बाद गंगा पार कर वत्सदेश की राजधानी कौशाम्बी में आए। वहाँ से फिर गंगा पार कर श्रावस्ती आदि होते हुए 15 54 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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