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प्राचीन
युग में गंगा के प्रवाह की विस्तीर्णता
हजारों नदियों का प्रवाह गंगा में मिलता है, अतः गंगा का प्रवाह चौड़ाई में बहुत विशाल हो गया है। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार समुद्र में प्रवेश करते समय गंगा का पाट साढ़े बासठ योजन का चौड़ा है।" और गंगा की गहराई एक कोस - अधिक एक योजन की है।" यह ठीक है कि उक्त कथन के अतिवादी शब्दों पर कुछ प्रश्न एवं तर्क खड़े हो सकते हैं, किन्तु इस पर से इतना तो निश्चित रूप से प्रमाणित होता है कि गंगा का प्रवाह प्राचीनकाल में बहुत विशाल रहा है। इसीलिए उसे महार्णव और समुद्ररूपिणी जैसे नामों से अभिहित किया गया है। प्राचीन काल में न तो गंगा में से ही कोई नहरें निकाली गई थीं और न यमुना, सरयु, गंडकी, शोण आदि उसकी सहायक नदियों से ही । अतः गंगा के विशाल प्रवाह की तत्कालीन विस्तीर्णता की सहज ही कल्पना की जा सकती है। समवायांग सूत्र के अनुसार तो गंगा हिमालय ( चुल्लहिमवंत ) से प्रवाहित होते ही कुछ अधिक 24 कोस का विस्तार ले चुकी थी ।" उक्त अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णनों पर से और कुछ नहीं तो इतना तो सिद्ध हो ही जाता है कि भगवान् महावीर के युग में गंगा का प्रवाह एक विशाल एवं विराट् प्रवाह माना जाता था। इसीलिए आचार्य शीलांक ने भगवान् महावीर द्वारा नौका से गंगा पार करने का वर्णन करते हुए, गंगा को दुस्तर, अगाध और अणोरपार कहा है। 12 गंगा आज के युग में
भगवान् महावीर के युग से अढाई हजार वर्ष जितना लम्बा काल बीतने पर आज भी गंगा की विराटता सुप्रसिद्ध हैं आज गंगा में से विशाल नहरें निकल चुकी हैं। यमुना, गोमती, सरयु और शोण आदि गंगा की सहायक नदियों में से भी अनेकानेक विराट् नहरें सिंचाई के काम में आ रही हैं। फिर भी गंगा अपनी विराटता को बनाए हुए है। वर्तमानकालीन वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार गंगा 1,557 मील के लम्बे मार्ग के बाद बंगसागर में गिरती है। यमुना, गोमती, सरयू, रामगंगा, गंडकी, कोशी और ब्रह्मपुत्र आदि अनेक सुप्रसिद्ध संयुक्त नदियों को साथ लेकर, वर्षाकालीन बाढ़ में, गंगा महानदी 18,00,000 घनफुट पानी का प्रस्राव प्रतिसेकेण्ड करती है। 3
अभी कुछ मास पूर्व पटना में, प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी ने, गंगा के पुल का शिलान्यास किया है। हिन्दुस्तान आदि दैनिक पत्रों में उन दिनों लिखा गया
. 52 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा
द्वितीय पुष्प
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