________________
से वहाँ पर ही यान को पकड़ कर रख लेते, उसे नीचे आने ही नहीं देते और घोषणा करते नीचे आकर कि 'ऐ धरती के वासियों ! खबरदार रहना । यदि तुमने चन्द्रमा पर उतरने का प्रयत्न किया, तो खैर नहीं तुम्हारी । '
श्री डोशीजी अधूरी बातें लिखते हैं। यह पुरानी आदत है उनकी । हिन्दुस्तान दैनिक में पहले दिन हमने भी ऐसा ही कुछ मिलता-जुलता पढ़ा था । किन्तु अगले ही अंकों में स्पष्टीकरण आया था चन्द्र यात्रियों का कि यह शोर और कुछ नहीं था। हम मनोविनोद के लिए अपने साथ चैक रिकार्ड ले गये थे। उन्हें ही बजा रहे थे। यह शोर उन्हीं रिकार्डों का था, जो दूर से कुछ विचित्र - सा सुनाई दे रहा था नीचे धरती वालों को। पूरे शब्द तो स्मृति में नहीं हैं, परन्तु वह चैक रिकार्ड की आवाज थी, इतना सुनिश्चित है। उन दिनों के हिन्दुस्तान दैनिक दिल्ली की फाइल निकाल कर कोई भी यह समाधान देख सकता है। मुझे खेद इस बात का है कि अपना झूठा पक्ष प्रमाणित करने के लिए डोशी जी जैसे श्रावक भी कितनी अधूरी बात लिखते हैं। क्या यह जनता को गुमराह करने वाला कदम नहीं है विचार-चर्चा के क्षेत्र में इस प्रकार के कदम बड़े ही गलत हैं। आखिर विचारक को प्रामाणिक तो होना ही चाहिए ।
प्रश्न - आप वर्तमान में माने जाने वाले 32 सूत्रों के अक्षर-अक्षर को प्रामाणिक तथा भगवान् की वाणी नहीं मानते? जबकि आपके प्रतिपक्षी दूसरे लोग मानते हैं, तो आप क्यों नहीं मानते ?
उत्तर-तथाकथित शास्त्रों का अक्षर-अक्षर भगवान् का कहा हुआ है, वह शत-प्रतिशत प्रामाणिक है, इन आगमों में कुछ भी हेर-फेर नहीं हुआ है, मैं ऐसा नही मानता। भगवान् महावीर से 980 वर्ष बाद, जब कि बीच में अनेक दुष्काल पड़ चुके थे, स्मरण शक्ति क्षीण हो चुकी थी, जैनधर्म और जैन साहित्य पर दूसरे संप्रदायों का कुप्रभाव पड़ चुका था और पड़ रहा था, तब आगमों का संकलन, संपादन एवं लेखन हुआ। कोई भी विचारशील पाठक समझ सकता है - इतने लम्बे काल में क्या कुछ परिवर्तन एवं परिवर्द्धन हो सकते हैं। कितना क्या कुछ नया जोड़ा जा सकता है, घटाया - बढ़ाया जा सकता है । आगमों का मनन एवं चिन्तनपूर्वक स्वाध्याय करने वाला तटस्थ अध्येता जान सकता है कि वास्तविक स्थिति क्या है।
क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है? शंका - समाधान 37
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org