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________________ प्रतिकार के लिए जब उसे कोई ठोस तर्क, युक्ति या प्रमाण नहीं मिलता, तो वह अभद्र शब्दों का प्रयोग कर अपने मन की कुण्ठा और खीझ बाहर निकालता है। और कुछ नहीं । श्री डोशीजी क्या कहते हैं, इसकी मुझे कोई चिन्ता नहीं । निन्दा और गालियों से, जो डोशी जी जैसे आलोचकों के ब्रह्मास्त्र है, मैंने न कभी अपना पथ बदला है, न बदलूँगा। मुझे अपनी प्रतिष्ठा उतनी नहीं, जितनी कि सत्य की प्रतिष्ठा प्रभावित करती है। मैं यदि चाहता तो सस्ती लोकप्रियता अपने साथियों से भी कहीं अधिक बटोर सकता था। मैं ऐसा कोई बुद्ध नहीं हूँ, जो यह सब न समझ पाता हूँ। तथाकथित लोकप्रियता, श्रद्धा, भक्ति और जय-जयकार बहुत ही सस्ते दामों में मिल सकते हैं। इसके लिए मुझे कुछ नहीं करना होता, केवल जन - साधारण की 'हाँ में हाँ मिलानी होती है, जी- हुजूरी करनी होती है, प्रचलित परम्पराओं के प्रति श्रद्धा सुरक्षित रखने की दुहाई देनी होती है, बस ! पर, यह सब करना, मेरे रक्त में नहीं है। प्रश्न- कुछ लोग कहते हैं कि आप डोशी जी को उत्तर क्यों नहीं देते ? उत्तर - किस बात का दूँ? उच्चस्तरीय कोई सुन्दर विचार चर्चा हो, शालीनता के साथ शंका-समाधान का प्रसंग हो तो मैं इसके लिए सहर्ष तैयार हूँ। केवल डोशी जी ही नहीं, हर किसी के साथ विचार क्षेत्र में उतर सकता हूँ। परन्तु श्री डोशी जी विचार चर्चा कहाँ करते हैं? गालियाँ देते हैं, और वह भी बहुत फूहड़पन से। आप ही बताइये, इन गालियों का क्या उत्तर दूँ मैं? श्री डोशी जी गाली दे सकते है, चूँकि उनके पास गालियाँ हैं । मेरे पास गालियाँ है ही नहीं, दूँ तो क्या दूँ? जिसके पास जो है, वह वही तो दे सकता है। जो नहीं है, वह कैसे दे सकता है? इसी भाव का एक प्राचीन श्लोक है, सम्भव है, कभी आपने पढ़ा हो या कहीं सुना हो : " ददतु ददतु गालीर्गालिमन्तो भवन्तो, वयमिह तदभावाद् गालिदानेऽप्यशक्ताः । जगति विदितमेतद् दीयते विद्यमानं, 11 न हि शशक- विषाणं कोऽपि कस्मै ददाति । । ' प्रश्न- अमरीकनों द्वारा की गई चन्द्रयात्रा के संबंध में डोशी जी ने जो लिखा है, वह आपके विचार में क्या है? 34 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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