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3 | क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है?
-शंका समाधान
प्रश्न-आजकल समाज में, खासकर साधु वर्ग में काफी हल्ला है कि आपने शास्त्रों को चुनौती दी है?
उत्तर-मैंने तो शास्त्रों को चुनौती नहीं दी है। भला शास्त्रों को मैं या और कोई भी चुनौती कैसे दे सकता है? शास्त्र का अर्थ धर्मशास्त्र है। यह एक ऐसा शब्द है, जिसके पीछे साधक की पवित्र धर्म-भावना रही हुई है। आध्यात्मिक जीवन की प्रेरणाओं का मूल स्रोत है शास्त्र। वस्तुतः वही भगवद्वाणी है। आध्यात्मिकता से शून्य कोरे भौतिक वर्णन ग्रन्थ हो सकते है, शास्त्र नहीं। यदि कोई चुनौती दे सकता है तो वह ग्रन्थों को दे सकता है, शास्त्रों को नहीं।
सर्वप्रथम फरवरी 1969 में प्रकाशित मेरे लेख का शीर्षक ही है 'क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है? ' उक्त शीर्षक में 'क्या' का प्रयोग ही बता रहा है कि शास्त्रों को चुनौती नहीं दी जा सकती। और इस बात का स्पष्टीकरण मैंने उस लेख में ही कर दिया था। फिर भी पता नहीं, लोग ऐसा क्यों कहते है? लोगों की बात छोड़िए, बात है संयमी मुनिराजों की। क्या तो उन्होंने पूरा लेख पढ़ा नहीं है, यदि पढ़ा है तो उसे अच्छी तरह समझा नहीं है। और तो क्या शीर्षक का भाक भी अच्छी तरह नहीं समझ सके हैं। यदि वस्तुतः समझ गए हैं तो उनके मन में कुछ और ही बात है। क्या बात है, मैं क्या बताऊँ।
प्रश्न-सम्यग् दर्शन (सैलाना) आपके सम्बन्ध में उक्त लेख को लेकर बड़ी अभद्र चर्चा कर रहा है। डोशी जी काफी बौखलाये हुए हैं। आप इस सम्बन्ध में क्या सोचते है?
उत्तर-मैं क्या सोचता हूँ, मुझे तो कुछ पंक्तियाँ पढ़ते ही हँसी आने लगती है। भद्र या अभद्र का कोई प्रश्न नहीं, चर्चा तो हो। पर वह तो चर्चा ही नहीं है। गालियाँ देना, चर्चा नहीं है। मनुष्य जब अन्दर में रिक्त हो जाता है,
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