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________________ अध्यात्म साधना के विरुद्ध जाने वाली विचारसरणियों का निरोध करता है- वही सच्चा शास्त्र है।" तार्किक आचार्य ने शास्त्र की जो कसौटी की है, वह आज भी अमान्य नहीं की जा सकती। वैदिक परम्परा के प्रथम दार्शनिक कपिल एवं महान् तार्किक गौतम ने भी जब शब्द को प्रमाण कोटि में माना, तो पूछा गया शब्द प्रमाण क्या है? तो कहा-'आप्त का उपदेश शब्द प्रमाण है !' आप्त कौन? तत्त्व का यथार्थ उपदेष्टा आप्त है।26 जिसके वचन में पूर्वापर विरोध, असंगति-विसंगति नहीं होती, और जो वचन प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों के विरुद्ध नहीं जाता, खंडित नहीं होता-वही आप्त वचन है। आचार्य ने उक्त कथन पर से सिद्ध हो जाता है कि किसका, क्या वचन मान्य हो सकता है और क्या नहीं। जो वचन यथार्थ नहीं है, सत्य की कसौटी पर खरा नहीं उतरा है, वह भले कितना ही विराट एवं विशाल ग्रंथ क्यों न हो, उसे 'आप्तवचन' कहने से इन्कार कर दीजिए। इसी में आप्त की और आपकी प्रामाणिकता है, प्रतिष्ठा है। हम स्वयं निर्णय करें तर्क शास्त्र की ये सूक्ष्म बातें मैंने आपको इसलिए बताई हैं कि हम अपनी प्रज्ञा को जागृत करें, और स्वयं परखें कि वस्तुतः शास्त्र क्या है, उसका प्रयोजन क्या है? और फिर यह भी निर्णय करें कि जो अपनी परिभाषा एवं प्रयोजन के अनुकूल नहीं है, वह शास्त्र, शास्त्र नहीं है। उसे और कुछ भी कह सकते हैं-ग्रन्थ, रचना, कृति कुछ भी कहिए, पर हर किसी ग्रन्थ को भगवद् वाणी या आप्तवचन नहीं कह सकते। शास्त्र की एक कसौटी, जो उत्तराध्ययन सूत्र से मैंने आपको बतलाई, जिसमें कहा गया है-तप, क्षमा एवं अहिंसा की प्रेरणा जगाकर आत्म दृष्टि को जागृत करने वाला शास्त्र है। यह इतनी श्रेष्ठ और सही कसौटी है कि इसके आध पर पर भी यदि हम वर्तमान में शास्त्र का निर्णय करें तो बहुत ही सही दिशा प्राप्त कर सकते हैं। बहुत से जिज्ञासुओं और मेरे साथी मुनियों के समक्ष मैंने जब कभी अपने ये विचार एवं तर्क उपस्थित किए तो वे कतराने से लगते हैं, कि बात तो ठीक है, पर यह कैसे कहें कि अमुक आगम को हम शास्त्र नहीं मानते ! इससे 26 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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