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________________ शास्त्र- स्वर्ण की परख प्रज्ञा एक कसौटी है, जिस पर शास्त्र रूप स्वर्ण की परख की जा सकती है। और वह परख होनी ही चाहिए। हम में से बहुत से साथी हैं, जो कतराते हैं, कि कहीं परीक्षा करने से हमारा सोना पीतल सिद्ध न हो जाए ! मैं कह देना चाहता हूँ कि इस में कतराने की कौन-सी बात है ? यदि सोना वस्तुतः सोना है, तो वह सोना ही रहेगा, और यदि पीतल है तो उस पर सोने का मोह आप कब तक किए रहेंगे? सोने और पीतल को अलग-अलग होने दीजिए- इसी में आप की प्रज्ञा की कसौटी का चमत्कार है। जैन आगमों के महान् टीकाकार आचार्य अभयदेव ने भगवती सूत्र की टीका की पीठिका में एक बहुत बड़ी बात कही है, जो हमारे संपूर्ण भगवद् वाणी की कसौटी हो सकती है। प्रश्न है कि आप्त कौन है? और उनकी वाणी क्या है? आप्त भगवान् क्या उपदेश करते हैं? उत्तर में कहा गया है कि- जो मोक्ष का अंग है, मुक्ति का साधन है, आप्त भगवान् उसी यथार्थ सत्य का उपदेश करते हैं। आत्मा की मुक्ति के साथ जिसका प्रत्यक्ष या पारम्परिक कोई सम्बन्ध नहीं है, उसका उपदेश भगवान् कभी नहीं करते। यदि उसका भी उपदेश करते हैं, तो उनकी आप्तता में दोष आता है। 24 यह एक बहुत सच्ची कसौटी है, जो आचार्य अभयदेव ने हमारे समक्ष प्रस्तुत की है। इससे भी पूर्व लगभग चौथी - पाँचवीं शताब्दी के महान तार्किक, जैन तत्त्वज्ञान को ~ दर्शन का रूप देने वाले आचार्य सिद्धसेन ने भी शास्त्र की एक कसौटी निश्चित् की थी आप्तोपज्ञमनुल्लंघ्यमदृष्टेष्टविरोधकम्। तत्त्वोपदेशकृत्सार्वं शास्त्रं कापथघट्टनम् ॥25 44 “जो वीतराग - आप्त पुरुषों के द्वारा जाना परखा गया है, जो किसी अन्य वचन के द्वारा अपदस्थ - हीन नहीं किया जा सकता और जो तर्क तथा प्रमाणों से खंडित नहीं हो सकने वाले सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है, जो प्राणिमात्र के कल्याण के निमित्त से सार्व अर्थात् सार्वजीनन - सर्वजन हितकारी होता है, एवं क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है ? 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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