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________________ और गीता, जिन्हें आज का धार्मिक मानस ऋषियों की पवित्र वाणी एवं भगवान् श्रीकृष्ण का उपदेश मान रहा है, वह कब, कैसे, किन परिस्थितियों में रचे गये, या परिवर्धित किये गए, और रचनाकार एवं परिवर्धनकार ने भले ही विनम्र भाव से ऐसा किया हो, फलत: अपना नामोल्लेख भी नहीं किया हो, पर यह सब गलत हुआ है। मैं बताना चाहता हूँ कि जिस महाभारत को आज आप धर्मशास्त्र मानते हैं, और व्यासऋषि के मुख से निःसृत, गणपति द्वारा संकलित मानते हैं, वह प्रारम्भ में केवल छोटा-सा इतिहास ग्रंथ था, जिसमें पांडवों की विजय का वर्णन होने से 'जय' नाम से प्रख्यात था। जब इसका दूसरा संस्करण ई. पू. 176 के पूर्व तैयार हुआ तो उसका नाम भारत रखा गया, ओर बहुत समय बाद प्रक्षिप्त अंशों की वृद्धि होते-होते वह महाभारत बन गया । | आज की गीता का समूचा पाठ, क्या सचमुच में ही कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिया गया श्रीकृष्ण का उपदेश है, या बाद के किसी विद्वान की परिवर्द्धित रचना या संकलन है? मनुस्मृति जो हिंदुओं का मानव धर्मशास्त्र कहलाता है, अपने आज के रूप में किस मनु की वाणी है, किसने उसे बनाया? ये तथ्य आज इतिहास से छिपे नहीं रहे हैं । 22 मैं इन धर्मग्रन्थों का, जिनमें काफी अच्छा अंश जीवन-निर्माण का भी है, किसी सांप्रदायिक दृष्टि से विरोध नहीं कर रहा हूँ किंतु, यह बताना चाहता हूँ कि मध्यकाल में जिस किसी विद्वान ने जो कुछ संस्कृत में लिख दिया या उसे कहीं प्रक्षिप्त कर दिया, उसे हम धर्मशास्त्र मानकर उसके खूंटे से अपनी बुद्धि को बाँध लें, यह उचित नहीं । उन ग्रन्थों में जो विशिष्ट चिंतन एवं दर्शन है, समग्र मानव जाति के कल्याण का जो संदेश है, उसका मैं बहुत आदर करता हूँ, और इसीलिए उनका स्वाध्याय व प्रवचनभी करता हूँ। किन्तु इस संबंध में इस वैचारिक प्रतिबद्धता को मैं उचित नहीं समझता कि उनमें जो कुछ लिखा है, वह अक्षरश: सत्य है । उत्तरकाल में आगमों की संकलना मैं सत्य के संबंध में किसी विशेष चिंतन धारा में कभी प्रतिबद्ध नहीं रहा, सदा उन्मुक्त एवं स्वतंत्र चिंतन का पक्षपाती रहा हूँ, इसलिए जो बात वैदिक ग्रंथों के संबंध में कह सकता हूँ, वह जैन ग्रंथों के संबंध में भी कहते हुए मुझे संकोच नहीं है। इतिहास का विद्यार्थी होने के नाते मैं इस तथ्य को मानता हूँ कि प्रत्येक क्या शास्त्रों को चुनौती दी जा सकती है ? 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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