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________________ नामक हिन्दी पुस्तक में देखा जा सकता है। इस पर से भारतीय साधुओं की अतीतकालीन परम्परा की चर्या की स्पष्टतः झाँकी उपलब्ध हो जाती है कि साधु बिना किसी विशेष कारण के गाँव एवं नगर में न ठहरे। यहाँ पर तो सच्चे साध्वाचारी साधुओं को नगर में ठहरना भी वर्जित है। मैं जीवन के 82 वें वर्ष में चल रहा हूँ। मुझे इस प्रकार के पक्ष - अपक्ष के सम्बन्ध में कोई रुचि नहीं है। फिर भी सत्य का तकाजा है कि धर्म एवं सत्य के नाम पर फैलाये जानेवाले भ्रमों का प्रतिकार किया जाए। सत्य के लिए निन्दा - स्तुति अपने में कोई अर्थ नहीं रखते। मैं जानता हूँ, मेरे लेखों से कुछ लोगों के क्षुद्र मन उत्तेजित होंगे, और वे इधर-उधर मन चाहा अन्ट - सन्ट लिख भी सकते हैं और छाप भी सकते हैं। यह उनकी अपनी मनोवृत्ति और तदनुकूल उनका कर्म है । मुझे इसकी कुछ भी चिंता नहीं है । जीवन और प्रकृति ने साथ दिया, तो मैं जीवन के अन्तिम श्वास तक असत्य एवं दम्भ पर समयोचित प्रहार करता ही रहूँगा। भगवान् महावीर ने कहा है "सच्चं खु भगवं " सत्य ही भगवान् है। भगवान् सत्य की प्रतिष्ठा बनाए रखना, भगवान् सत्य की पूजा है और यह सत्य के उपासक के जीवन में अन्तिम क्षण तक होती रहनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only यह एक नया पागलपन 173 www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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