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करने की दिशा में अग्रसर होंगे तथा पुरानी और नयी परम्परा की विभेदरेखा का स्पष्ट विश्लेषण करेंगे।
संदर्भ :1. केसलोओ य दारूणो
-उत्तराध्ययन 19/33 2. तरूणानां चातुर्मासिक इति
-कल्पसूत्र-सुबोधिका 9/57 3. संवच्छरो वर्षारात्रः -समय सुंदरीय कल्पलता 4. (क) जत्ति उड्डबद्धे वासासु वा खुरेण कारवेंति तो–मासलहुँ, कत्तीए मासगुरूं। आणादियाण दोसा, छप्पतिगाण विराहणा, पच्छकम्मदोसा य।
-निशीथ विशेष चूर्णि-गा. 3213 5. पज्जोसवणा य वासवासो य
-नि. भा. 3139 6. पव्वेसु तव करेंतस्स इमो गुणो भवति.... उत्तरगुणकरणं कतं भवति, एगग्गया य कता
भवति, पज्जोसवणासु वरिसिया आलोयणा दायव्वा, वरिसाकालस्स य आदीए मंगलं कतं भवति। सड्ढाण य धम्मकहा कायव्वा। पज्जोसवणाए जइ अट्ठम ण करेइ तो चउगुरूं...... वितियं अववादेण ण करेज्जपि - उपवासस्स असहू ण करेज्ज, गिलाणो वा न करेज्जा, गिलाणपडिचरणो वा, सो उपवासं वेयाच्चं च दो विकाउं असमत्थो एवमादिएहिं
कारणेहिं पज्जोसवणाए आहारतो सुद्धो। 7. वासाखेत्तालंभे
-निशीथ भाष्य 3146 आसाढ़े सुद्ध वासासवासपाउग्गं खेत्तं मग्गतेहिं ण लद्धं ताव जाव आसाढ़ चउम्मासातो परतो सवीसतिराते मासे अतिकूते लद्धं ताहे भद्दवया जोण्हस्स पंचमीए पज्जोसवंति
एवं णवमासा सवीसतिराता विहरणकालो दिट्ठो ___ -विशेष चूर्णि 8. जेभिक्खू पज्जोसवणाए गोलोमाइपि बालाई उवाइणावेइ, उवाइणावेंत वा सातिज्जति।
-निशीथ सूत्र 10 1 44 9. भगवान् ऋषभदेव ने अपने हाथों चतुर्मुष्टि लोच किया। यहाँ चतुर्मुष्टि से अभिप्राय
यह है कि शिर के पांच भाग हैं, चार तो आगे-पीछे अगल-बगल आदि चारों दिशाओं में और एक बीच में। भगवान् ऋषभदेव ने चारों ओर से तो लोच कर लिया, किन्तु बीच के भाग का लोच नहीं किया, शिखा रहने दी।
___152 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
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