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हुए भादवा सुदी पंचमी के हिस्से में आ गए। और इस प्रकार दोनों ही पर्युषण उत्सर्ग हो गए, अपवाद कोई रहा ही नहीं।
बात लंबी होती जाती है, फिर भी कुछ स्पष्टीकरण तो करना ही होता है। उत्सर्ग का अपवाद होना या अपवाद का उत्सर्ग होना, अधिकतर समाज की बदलती परिस्थिति के कारण होता है। कुछ विशिष्ट प्रसंगों को छोड़कर, कोई एक व्यक्ति विशेष तथा दिनांक (तिथि) विशेष उसके मूल में नहीं होता। पर्युषण के इस परिवर्तन एवं विभाजन में भी बदलता हुआ समय एवं समाज ही हेतु रहा है, और कुछ नहीं।
आगमानुसार दिन का तीसरा पहर भिक्षा एवं विहार का उत्सर्ग था, शेष काल अपवाद ! और वह अपवाद कब किसके द्वारा उत्सर्ग हो गया? एकबार भोजन के अतिरिक्त दुबारा, तिबारा भोजन, जो कभी अपवाद था, आज उत्सर्ग कैसे हो गया? एक पात्र से अधिक पात्र रखना, स्थविरादि के लिए अपवाद था, वह कैसे उत्सर्ग हो गया? एक से दो, दो से तीन, तीन से चार पात्र कब और किसके द्वारा उत्सर्गरूप हुए? जैन परंपरानुसार आषाढ़ और पौष-ये दो ही महीने बढ़ते हैं, चातुर्मास में कोई महीना बढ़ता ही नहीं। तब अपनी मूल परंपरा को छोड़कर चौमास में श्रवणादि-वृद्धि की मिथ्याश्रुतप्रतिपादित मान्यता को कब, क्यों किसने स्वीकार कर लिया? रात्रि के तीसरे पहर के सिवा अन्य पहरों में सोना, भजन आदि के रूप में गाना और लेखादि लिखना, किवाड़ खोलना, विहार में गृहस्थों का साथ रहना, रात को साधु के मकान में गृहस्थों का निवास करना, गृहस्थों से पढ़ना या पढ़ाना, गृहस्थों को पत्रादि लिखना या लिखाना, आदि अनेक अपवाद, ओर कुछ तो कभी शास्त्रनिर्दिष्ट अपवाद भी नहीं थे, उत्सर्ग कैसे हो गए? क्या किसी एक व्यक्ति ने किसी एक निश्चित दिन उक्त सब परिवर्तनों के प्रति उत्सर्ग हो जाने की घोषणा की? इतिहास में दो चार परिवर्तनों के लिए कुछ नाम हैं भी, तो वे भी बदलते आए समय प्रवाह के चतुर उद्घोषक ही हैं, और कुछ नहीं। वर्तमान पर्युषण काल का भी अपवाद से उत्सर्ग होना, एक ऐसा ही परिस्थितियों का बदलता प्रवाह था, और कुछ नहीं। संवत्सरी और चातुर्मासिक-दो पर्व एक दिन कैसे?
संवत्सरी पर्व और चातुर्मासिक पर्व, दो भिन्न पर्व हैं। वे एक दिन कैसे होंगे, दोनों की प्रायश्चित्त व्यवस्था कैसे होगी? यह इतना उथला प्रश्न है कि मन
132 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
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