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________________ हैं। आचेलक्य आदि शेष छह कल्प अनवस्थित हैं। ये कल्प प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के शासन में तो नियत होते हैं, शेष मध्यकालीन 22 तीर्थंकरों के शासन में नियत नहीं होते। महाविदेह क्षेत्र में भी नहीं होते। संक्षेप में प्रमाण स्वरूप कुछ उद्धरण इस प्रकार हैं "सिज्जायरपिंडे य, चाउज्जामे य पुरिसजेटे य। कितिकम्मस्स य करणे, चत्तारि अवटिया कप्पा 16361॥ आचेलक्कुद्देसिय, सपडिक्कमणे य रायपिंडे य। मासं पज्जोसवणा, छऽप्पेतऽणवहिता कप्पा ॥6362॥ -बृहत्कल्पभाष्य "छसु अडिओ उ कप्पो, एत्तो मज्झिमजिणाण विण्णेओ। णो सययसेवणिज्जो, अणिच्चमेससरूवो त्ति ।।7।।" -पंचा. 17 द्वार एवं महाविदेहेऽपि द्वाविंशतिजिनवत् सर्वेषां जिनानां कल्पव्यवस्था। _ -कल्पसूत्र सुबोधिका, व्या. 1 उपर्युक्त उद्धरणों से स्पष्ट है कि श्री अजितनाथ से लेकर श्री पार्श्वनाथ तक बाईस तीर्थंकरों के शासन में पर्युषण कल्प नियत नहीं हैं। पर्युषण का मूल अभिप्राय यहाँ वर्षावास से है। वर्षा होती रहे तो एक स्थान पर वर्षाकाल में, 22 तीर्थंकरों के साधु-साध्वी, निवास कर सकते हैं। यदि वर्षा न हो तो कभी भी विहार कर सकते हैं। उनके यहाँ महावीर के शासन-जैसी चौमास करने की, नियत परम्परा नहीं है। मासकल्प की भी कोई व्यवस्था नहीं है। यदि निर्दोष स्थिति जानें, और अन्य कोई अपेक्षा न हो तो देशोन पूर्व कोटि तक भी एक स्थान पर रह सकते हैं। अस्तु, जब उस युग में चौमास की ही कोई व्यवस्था नहीं थी, तब आषाढ़-पूर्णिमा का वर्षावास सम्बन्धी पर्युषण या आजकल का प्रचलित वर्षावास कालीन भादवासुदि पंचमी का पर्युषण, कैसे तर्क संगत हो सकता था? दूसरा प्रश्न प्रतिक्रमण का है। कुछ महानुभाव पर्युषण का सम्बन्ध वर्षावास-स्थापना से न जोड़कर मात्र वार्षिक प्रतिक्रमण से जोड़ते हैं। किन्तु उक्त पक्ष से भी 22 तीर्थंकरों के शासन में पर्युषण सिद्ध नहीं होता। 22 तीर्थंकरों के 10 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003409
Book TitlePragna se Dharm ki Samiksha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2009
Total Pages204
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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