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के लिए आक्सीजन गैस की आवश्यकता प्रमाणित की जाती है। जैन आगम भी अग्नि को जलने के लिए वायु का होना आवश्यक मानते हैं । 14
विद्युत् की स्थिति इससे सर्वथा भिन्न है। बिजली का बल्ब वैकुम (Vaccum) होता है, उसमें से आक्सीजन आदि वायुतत्त्व पूर्ण रूप से निकाल दिया जाता है। अतः विद्युत् आक्सीजन के बिना प्रकाश देती है। यदि बल्ब में कुछ गड़बड़ हो जाए, वैकुम की स्थिति न रहे तो तत्काल ही वह फ्यूज हो जाता है, फिर वह प्रकाशमान नहीं रहता। इस पर से भी यह सिद्ध हो जाता है कि अग्नि और विद्युत् परस्पर भिन्न हैं।
हर उष्णता और चमक अग्नि नहीं है
साधारण जनता बाहर की दो चार बातें एक जैसी देखकर भिन्न वस्तुओं में भी एकत्व की धारणा कर लेती है। हर पीले रंग की चीज सोना है, बस पीतल भी सोना बन जाता है, अशिक्षित एवं भद्र ग्रामीण की दृष्टि में। भारतीय लोककथा के वे बंदर प्रसिद्ध है, जो सर्दी से बचने के लिए गुंजाओं (चिरमिठी) को लाल रंग के कारण अग्नि समझ बैठे थे, और उनको ताप रहे थे। विद्युत् में उष्णता है, प्रकाश है, चमक है, तो बस वह अग्नि है - यह मान्यता ऊपर की लोककथा का स्मरण करा देती है।
यदि केवल चमक ही अग्नि का लक्षण है, तो रात में जुगनूं भी चमकता है। आकाश में चाँद भी चमकता है, चांद के धरातल से पृथ्वी भी चमकती है, तो क्या ये सब अग्नि माने जाएँ ? जीवाजीभिगम और जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में वर्णित कल्पवृक्षों की एक जाति चमकती है, प्रकाश विकीर्ण करती है, तो क्या उसे भी अग्नि मान लें ? उत्तराध्ययन (19/47 ) में नरक की उष्ण वेदना का वर्णन करते हुए कहा गया है कि यहाँ धरती की प्रचण्ड अग्नि से वह नरक भूमि की उष्णता अनन्त गुणी है, तो वह पृथ्वी भी अग्नि है क्या? हमारा शरीर उष्ण रहता है, बुखार में तो ताप कई गुना बढ़ जाता है, तो क्या यह सब अग्नि का काम है? उदरस्थ भोजन पचता है, इसके लिए जठराग्नि की कल्पना की गई है, तो क्या वस्तुतः जैन परम्परा भी पेट में अग्नि काया मानती है ? समुद्र का तथाकथित बड़वानल क्या वस्तुतः अनल अर्थात् अग्नि है, या केवल एक ताप है ? उक्त वर्णनों को विवेचक बुद्धि से पढ़ते हैं, तो पता लगता है कि वस्तुतः लोकमान्यता क्या है और इसके विपरीत सही वस्तुस्थिति क्या है?
ध्वनिवर्धक का प्रश्न हल क्यों नहीं होता? क्या विद्युत अग्नि है ? 101
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