________________
प्रकाशकीय
"प्रज्ञासे धर्म की समीक्षा " पुस्तक में प्रज्ञामहर्षि पूज्य गुरूदेव राष्ट्रसन्त उपाध्याय श्री अमरमुनिजी महाराज के क्रान्तिकारी विचारपूर्ण लेखो का संकलन हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में आप देखेगें पूज्य गुरूदेव की सत्यानुलक्षी प्रज्ञा ने महावीर के सिध्दान्तों को जीया है। वे साक्षात् ज्ञानमूर्ति हैं। ज्ञान सागर उन्होने मथा हैं। अतः प्रबुद्ध मनीषी, ज्ञानपिपासु मुमुक्षुओं प्रस्तुत पुस्तक के लिए अत्याग्रह था। ज्ञान सागर की गहराई से प्राप्त मणिमुक्ताओं के प्रकाश में साध् क रूढिवादिता एवं भ्रान्तियों के कुहासे में अपनी साधना आसानी से कर सकेगा। इस विश्वास के साथ प्रस्तुत ग्रन्थ का पुनः प्रकाशन हो रहा है।
पूज्य गुरूदेव के आशीर्वाद से एवं आचार्य चन्दनाश्री जी की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में वीरायतन ने तीर्थक्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं में, सेवा शिक्षा के क्षेत्र में बहुआयामी कार्य किया है। आचार्यश्रीजी की प्रेरणा से वीरायतन साहित्य प्रकाशन में कार्यरत हैं ।
सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा गत 50 वर्ष से पूज्य गुरूदेव के साहित्य का प्रकाशन कर रहा है। मौलिक साहित्य प्रकाशन में सन्मति ज्ञानपीठ का महत्वपूर्ण योगदान है।
सुगाल एण्ड दामाणी, चैन्नई ने भी पूज्य गुरूदेव के साहित्य का प्रकाशन किया है जिसे विद्वतवर्ग एवं सामान्य लोगों ने बहुत पसंद किया है। प्रस्तुत ग्रन्थ प्रकाशन में भी वीरायतन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष श्री सुगालचंदजी एवं उनके पुत्र श्री प्रसन्न और श्रीमति किरण (सुगाल एण्ड दामाणी) का महत्वपूर्ण आत्मीय सहयोग प्राप्त हुआ है ।
प्रस्तुत ग्रन्थ के प्रायोजक श्री जयराज तरूण कामाणी का वीरायतन परिवार की ओर से अभिनंदन करता हूँ। उन्होने श्री भूपतभाई की स्मृति में पूज्य गुरूदेव के इस सैद्धान्तिक ग्रन्थ का प्रकाशन कराया हैं ।
प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org