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दे दे? नहीं, यह नहीं हो सकता। हिंसा और अहिंसा की गलत धारणाओं के चक्र में उलझकर जो धर्म बंगलादेश की प्रस्तुत समस्या से अपने को तटस्थ रखने की बात करते हैं, तो मैं पूछता हूँ, वे धर्म हैं, तो किसलिए हैं? उनका मानवीय मूल्य क्या है? क्या उनका मूल्य केवल यही है कि कीड़े-मकोड़े को बचाओ, छापे-तिलक लगाओ, मंदिर में घण्टा बजाओ, भजन-पूजन करो। यह सब तो साधना के बाह्यरूप भर हैं। यदि मूल में मानवता नहीं है तो यह सब मात्र एक पाखण्ड बनकर रह जाता है। सच्चा धर्म मानवता को विस्मृत नही कर सकता। कौन ध र्म ऐसा कहता है कि द्वार पर आने वाले उत्पीड़ित शरणार्थियों का दायित्व न लिया जाए? उन्हें आश्रय न दिया जाए? कहा है कि एक व्यक्ति, जो कि किसी को पीड़ित कर रहा है, वह पाप कर रहा है। लेकिन पीड़ित व्यक्ति अपनी प्राण रक्षा के लिए बहुत बड़े भरोसे के भाव से किसी के पास शरण लेने के लिए आए और यदि वह उस शारणागत की रक्षा के लिए प्रयत्नशील नहीं होता है, तो वह उस उत्पीड़क से भी बड़ा पापी है, जिसने कि अत्याचार करके उसको मार भगाया है। एक त्रस्त व्यक्ति विश्वास लेकर आपके पास आया है कि यहाँ उसकी सुरक्षा होगी और उसी विश्वास का आपकी ओर से यदि घात हो जाए, तो कल्पना कीजिए, उसकी कितनी भयावह स्थिति होती है ! समर्थ होते हुए भी आपने उसके लिए कुछ किया नहीं, उलटा उसे धक्का दे दिया, तो यह एक प्रकार का विश्वासघात ही तो हुआ। और विश्वासघात बहुत बड़ा पाप है। किसी को अभय देना, एक महान् धर्म है और अभय देने से किसी भयाक्रान्त को इन्कार कर देना बहुत बड़ा अधर्म है। बंगलादेश के एक करोड़ के लगभग पीड़ित विस्थापितों को अभय देकर भारत ने वह महान् सत्कर्म किया है, जो विश्व इतिहास में अजर-अमर रहेगा।
यह बहुत बड़ी दैवी कृपा हुई कि बंगलादेश के पीड़ितों ने आपके ऊपर भरोसा किया। और, यह जानी हुई बात है कि भरोसा किसी साधारण व्यक्ति पर नहीं किया जाता। पास में अन्य देश भी थे, लेकिन वहाँ पर कोई नहीं गया, सभी भारत में ही आए। क्यों आए? इसका तात्पर्य यह है कि इसका गौरव उन्होंने एकमात्र आपको दिया। उनको भरोसा था कि वहाँ भारत में उनकी ठीक-ठीक रक्षा होगी। और इतना बड़ा विश्वास लेकर कोई जनता आए और फिर उसे आप ठुकरा दें, धक्का दे दें, तो यह कितना बड़ा पाप है? आप भाग्यशाली थे कि आप
86 प्रज्ञा से धर्म की समीक्षा - द्वितीय पुष्प
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