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शरणागत रक्षा: आज के सन्दर्भ में
जैसा कि आपने ऊपर राजा चेटक की शरणागत वत्सलता की बात देखी है, आज भी वह बात ज्यों की त्यों है आपके समक्ष । और तब तो केवल एक शरणागत का सवाल था और अब तो एक करोड़ के लगभग प्रताड़ित, अतएव विस्थापित बंगाली शरणार्थियों का सवाल है । विचार कीजिए, इन शरणार्थियों में माताएँ भी हैं, बहनें भी हैं, बुड्ढे भी हैं, बच्चे भी हैं, बच्चियाँ भी हैं, नौजवान भी हैं। क्रूर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा भयंकर मौत उन सबके सिर पर मँडरा रही है, और सिर्फ मौत ही नहीं, उनके नैतिक आदर्शों की भी हत्या हो रही है। मानवता को लजा देने वाले दुराचार हो रहे हैं, विभिन्न प्रकार के पापाचार हो रहे हैं। उन्हें एक पशु के समान भी नहीं समझा जा रहा है। यदि कोई पशु को मारता है, तो थोड़ी-बहुत दया तब भी रखी ही जाती है। पशुहत्या के सम्बन्ध में भी कुछ नियम हैं कि उनका क्रूरतापूर्ण वध नहीं होना चाहिए। लेकिन इन विस्थापितों के प्रति तो इतनी निर्दयता की गई कि घर-बार सब कुछ छोड़कर वे यहाँ आये ? स्पष्ट है, भयत्रस्त व्यक्ति जायेगा कहाँ ? वहीं तो जाएगा, जहाँ उसे शरण पाने का भरोसा होगा ! कुछ लोग कहते हैं कि भारत सरकार ने प्रधानमंत्री इन्दिराजी ने गलती की, जो इन सबको अपने यहाँ रख लिया । न रखते, न झगड़ा होता और न युद्ध की नौबत आती । बेकार का सिरदर्द मोल ले लिया । मैं पूछता हूँ, बंगाल के विस्थापित यहाँ भारत में कैसे आए? पीछे से उन पर गोली चलाई जा रही थी। अतः प्राण के रक्षा के लिए भारत के द्वार पर आए। और किसी तरह से तो वे रुक नहीं सकते थे। यदि इधर से भी बंदूक तान दी जाती कि खबरदार इध र आए तो। पीछे लौटो, नहीं तो गोली मार दी जाएगी ! विचार कीजिए, ऐसी स्थिति में, जब कि पीछे से गोली चल रही हो और आगे से भी गोली चलने लगे, तो बेचारा शरणागत कहाँ जाए? क्या करे? ऐसी स्थिति में आपका धर्म क्या कहता है ? आपकी मानवता क्या कहती है ?
भारतवर्ष की संस्कृति और सभ्यता को आदिकाल से ही अपने इस शरणागत रक्षा के धर्म पर गौरव है। इसी पर हिन्दू धर्म को गौरव है, जैनधर्म को गौरव है और जितने भी अन्य धर्म हैं - सबको गौरव है । और, जिसके सम्बन्ध में हम सब लाखों वर्षों से बड़े-बड़े गर्वीले नारे लगाते आ रहे हैं तो क्या अब वर्तमान स्थिति में भारत अपने उस शरणागत रक्षा के पवित्र धर्म को तिलांजलि
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धर्म-:
- युद्ध का आदर्श 85
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