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बुद्धि-विलास जो हैं तिहुँ लोकनिकौ प्रमान, सो प्रथम वरन करियत सुजांन । प्राचीन गृथ अनुसार पाय,
स्वरवानीको भाषा वनाय ॥६॥ दोहा : प्रथम भूमि मधि लोककी, चित्रा नाम कहात ।
तातें जोजन लक्ष यक, ऊँचे स्वर्ग' विष्यात ।'७॥ मद्धि जोतिषी-पटल मैं, प्रथिरनुको यह हेत। मेर सुदरसन प्रादिकी, नित्ति प्रदषिणा' देत ॥८॥
स्वर्ग नामा कवित्त : सउधर्म ईसांन औ सनतकुमार जांनि,
बहुरि महिंद्र वृह्म व्रह्मोतर जानिऐ। लांतवा कापिष्ट शुक्र महाशुक्र है सतारि,
सहैवारि प्रांरणत प्रांरणत पहचानिऐ ॥ . पारण अच्युत भऐ सोलह सुरग तिन,
ऊपरि है नौ ग्रीवेक तिन्हैं उर अनिए। तापें नौ निड़ोतरे' के परि पांच पिच्योतरे२,
तिन परि 'मुक्ति-सिला सिद्ध'३ ठौर मांनिऐ ॥६॥ दोहा : वाही चित्रा भूमि के, तलि भुवनालय जांनि । जोजन लक्ष प्रमाण फुनि, तलैं नरक दुष-दांनि ॥१०॥
नरक प्रभा नाम' रत्न सर्करा वालुका, पंक धूम तम सोदि । वहुरि' महातम सात ऐ३, तिन तलि कही निगोदि ॥११॥
७:१ श्वर्ग। ८:१ प्रदिषरणां। है:१निडोतरे। २ पिचौतरे। ३ सिद्ध मकति सला। ११ : १नाम । २ बहुरि। ३ सातए।
tAccording to the Svetambara's there are twelves "Swarga's" only. whereas the
Digambara's stick to sixteen I. e. ब्रह्मोत्तर, कापिष्ट. शक्र, शतार in addition. Els it Atlantic ?
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