SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २ ] बुद्धि-विलास जो हैं तिहुँ लोकनिकौ प्रमान, सो प्रथम वरन करियत सुजांन । प्राचीन गृथ अनुसार पाय, स्वरवानीको भाषा वनाय ॥६॥ दोहा : प्रथम भूमि मधि लोककी, चित्रा नाम कहात । तातें जोजन लक्ष यक, ऊँचे स्वर्ग' विष्यात ।'७॥ मद्धि जोतिषी-पटल मैं, प्रथिरनुको यह हेत। मेर सुदरसन प्रादिकी, नित्ति प्रदषिणा' देत ॥८॥ स्वर्ग नामा कवित्त : सउधर्म ईसांन औ सनतकुमार जांनि, बहुरि महिंद्र वृह्म व्रह्मोतर जानिऐ। लांतवा कापिष्ट शुक्र महाशुक्र है सतारि, सहैवारि प्रांरणत प्रांरणत पहचानिऐ ॥ . पारण अच्युत भऐ सोलह सुरग तिन, ऊपरि है नौ ग्रीवेक तिन्हैं उर अनिए। तापें नौ निड़ोतरे' के परि पांच पिच्योतरे२, तिन परि 'मुक्ति-सिला सिद्ध'३ ठौर मांनिऐ ॥६॥ दोहा : वाही चित्रा भूमि के, तलि भुवनालय जांनि । जोजन लक्ष प्रमाण फुनि, तलैं नरक दुष-दांनि ॥१०॥ नरक प्रभा नाम' रत्न सर्करा वालुका, पंक धूम तम सोदि । वहुरि' महातम सात ऐ३, तिन तलि कही निगोदि ॥११॥ ७:१ श्वर्ग। ८:१ प्रदिषरणां। है:१निडोतरे। २ पिचौतरे। ३ सिद्ध मकति सला। ११ : १नाम । २ बहुरि। ३ सातए। tAccording to the Svetambara's there are twelves "Swarga's" only. whereas the Digambara's stick to sixteen I. e. ब्रह्मोत्तर, कापिष्ट. शक्र, शतार in addition. Els it Atlantic ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy