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॥ श्रीः॥
बखतराम साह कृत
बुद्धि-विलास
'ऊँ नम सिद्धय भ्य नमः'' अथ बुद्धि-विलास' नाम ग्रंथ लिष्यते ॥ छप्पै समद-विजय सुत जिन सु, नमत अघ हरत सकल जग।
कुमर-पद हि तप-षड़ग, लियव कर हनिय करम-ठग ॥ भरम-तिमर सव' नसन, उदय हुव तिभवन दिनकर ।
जपि भवि भवदधि तरत, लहत गति परम मुकतिवर ॥ तसु चरन-कमल भविजन भमर, लषि लषि अनुभव रस चषत । वह करहु नजरि मुझ परि सु जिम, सुफल फलहि हम कहि वषतः ॥१॥
प्रादीस्वर तें महावीर जिन लौं तीर्थंकर । सकल भये चौवीस, वहरि तिनंही के गनधर ॥ वृषभसेन दै प्रादि अंत गोतम लौं नामो ।
चौदहसै त्रेपन जु भये२ तदभव सिवगांमी ॥ फुनि प्ररहत सिध प्राचार्य अरु, उपाध्याय सव साधुवर ।
है, हौहि, ह गए, तिनु नमैं, वषतराम जुग जोरि कर ॥२॥ दोहा': महा विदेहनि बीस जिन, सास्वत रहे विराज ।
तिनहि नमत सुष संपजै, जात सकल अघ भाजि ॥३॥ वंदौं वांनी सरस्वती, मन वच तन सिर नाय ।
जाकी क्रपा कटाछि तें, बुद्धि वढे सुषदाय ॥४॥ छंद पद्धरी : श्री गुर-प्रसाद लहि बुधि विकास,
रचिहौं, व गृथ यह वुधि विलास । तामै वरनन लषि सकल सार, भविजन पावैगे सुष अपार ॥५॥
१: Bopens with '१॥
दानमः सिद्वेभ्यः॥ २ बद्धि-विलाश। ३ बिजय । ४ षडग । ५ सब। ६ भबि । ७ मुकतिबर। भबिजन । ९ बषत । २:१ वृषभसेंन। २ भरे। ३ अरहंत । ३ : १ दौहा।
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