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________________ बुद्धि-विलास - [ १७३ है विलास यह बुद्धि को, वुद्धिवांन भवि-हेत । गहि कुबुद्धि निदौ न लषि, चरचा सुत्रुधि-निकेत ॥१५१५॥ जो लषिही या ग्रंथ कौं, तौ परमत जग मांहि । तिनत नाहि ठिगाय हौ, वै तुमकौं न हसांहि ॥१५१६॥ ऐ भवि-श्रावग-धर्म की, जुक्ति धरी या मांहि । अध्यातम सिद्धांत तों, साधन मुनी करांहि ॥१५१७॥" भवि-कवि सौं यह वीनती, चूक्यौ हूं कछु ताहि । लेहु सुधारि विचारि कैं, अरज मांनिमो चाहि ॥१५२४॥ संवत अठारह सतक, ऊपरि सत्ताईस । मांस मांगिसर पषि सुकल, तिथि द्वादसी लहीस ॥१५२५॥ नषिक्त अश्वनी वार गुरु, सुभ महुरत के मद्धि । ग्रंथ अनूप रच्यो पढे, है ताकौं सव सिद्धि ॥१५२६॥ इति श्री बुद्धि-विलास नाम ग्रंथ संपूर्ण ॥ लिषंत वषतरांम साह शुभं भवत् ॥f ।। श्री ॥ ॥श्री ॥ ॥श्री ॥ ॥श्री ॥ ॥श्री।। पंडितजी श्री जैचंदजी की पुसतग नजरि कीयो संवत १८३२. १५१७ : १missings TA. After 1517 the remark: '६ उपरि वध्या ॥२३॥' +VS1827 (A.D.1770). *B contains 1523 verses in all. The discrepancy is due to certain interpolations and wrong numbering from which both the copies suffer. 41 Colophon in B is as follows: इति श्री वुद्धि-बिलास नाम ग्रंथ संपूर्णम् । श्रुभं भवत् ॥ संवत १८६३ का मिती प्रासोज श्रुक्ल : सोमवार लिषाइतं जीवरणरांम साह बेटा बषतराम का दसकत स्यौजीराम भावसा का लिषवा मै असुद्ध षोट होय तो सुद्ध करि लोज्यौ पाठ माफिक लिषाइतं ज्यौ वाचं सूर्ण सूणावे त्यांने जथा जोग्य वंचीज्यो श्रीरस्तू कल्याणमस्तु । ॥श्री॥ १ ॥श्री ॥ २ ॥ श्री ॥ ३ ॥श्री ॥ ४ ॥श्री॥ रस्तू। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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