________________
सोरठा :
बुद्धि-विलास
भए तरेपन येह, भेद सु गुरणथांनकन मधि । होत जीवकै जेह, जहां-जहां सो विधि सुनहु ॥ १४६६ ॥
लषात ।
वीस ॥१४७५॥ सुग्यांन ।
चौपाई : पहली गुणसथांन मिथ्यात, तहां भाव चौतीस क्षयोपसम के तौ दस रहैं, भेद तास के ऐ निरवहैं ॥१४७० ॥ चक्ष्यु - प्रचक्ष्य ए दरसन दोय, लवधि पांच कहि प्रायो सोय । कुमति कुश्रुति कुबुधि कुग्यांन, ए दस भेद भयें मतिवांन ॥१४७१ ॥ उद' येक सव भाव इकीस, पाररणांमि त्रयभाव कहीस । सर्व भाव चौतीस जताऐ, सासादन वत्तोस वताऐ ॥१४७२॥ दस तौ क्षयोपसम के वै ही, भवित्व' विनि पररणांमिक द्वै ही । वीस भाव उद यक वतात, सव मैं घट्यो ऐक मिथ्यात ॥१४७३ ॥ मिश्र जु' गुरणसथांन तीसरौ, दूजे सम वत्तीसौं धरौ । चोथे प्रवृिति भाव छतीस, प्रउदयेक के तौ वै द्वादस क्षयोपसम के जांन, दरसन तीन सुत्तीन लवधि पांच जनों तै हतीक, समकित जुत वारह व्यापक उपसम समकित दोय, भाव पारणामिक देसविरति पंचम गुरणयांन, तीस ऐक तसु भाव उपसमक्ष्यायक समकित हैं, भाव पाररणामिक क्षयोपसन के तेरा जांनौं, वारह तौ चतुर्थसम इक संजम ऐ तेरा भये, अउद येक के चौदा च्यारि कषाय वेद हैं तीन, गति तिरजंच मनिष द्वै सुभलेस्या त्रय प्रसिधि प्रग्यांन, ऐ हो' भाव चतुर्दस जांन । ऐ तौ भये भाव इकतीस, पंचम तरणें सु कहे कवीस ॥१४८० ॥ छठौ है प्रमत्व गुरणयांन, भाव तीस इक तामैं जांन । उपसमक्ष्यायक समकित दोय, भाव पारणांमिक द्वै होय ॥ १४८१॥
१४७२ : १ अवद । १४७३ : १ अभवितु । १४७५ : १ missing t १४७६ : १ तहतीक । १४८० : १ई । १४८१ : १ प्रभत्त ।
Jain Education International
२ अविरत ।
[ १६६
For Private & Personal Use Only
ऐ ठीक ॥१४७६॥ सोय । प्रमान ॥ १४७७ ॥ हैं ।
मानौं ॥१७८॥ कहे ।
लीन ॥१४७६ ॥
www.jainelibrary.org