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________________ बुद्धि-विलास [ १५५ सोरठा : षांन पान न विवेक, सेवत हैं सातौं विप्तन । ताही मन की टेक, यह दीसत कलिकाल मैं ॥१३२२॥ जामैं होमत मास, दारू फुनि वे षात निति । ता मत तरण प्रकास, होत लषौ कलिकाल मैं ॥१३२३॥ दोहा : यह तौ श्रीगुर कहि गये, जिनमत तरणौं प्रचार । दिन दिन घटतौ होयगौ, या कलिकाल मझार ॥१३२४॥ परि यह वात विचारि भवि, तजहु न जिनमत टेक । जिह तिह विधि रक्ष्या वरण, सो करि धारि विवेक ॥१३२५॥ या जिनमत सौ जगत मैं, और रतन नहि कोय । जिंह उजास मग सकल लषि, सिव पहुचे भविलोय ॥१३२६॥ पुनः क्रिया एक सौ आठ प्रादि पुराणोक्त वर्नन दोहा : क्रिया ऐक सौ पाठ ये, गर्भ प्रादि तै जांनि । श्रावग कौं करिवो कही, विधि सुनिये सुष दांनि ॥१३२७॥ छद गी० : चक्री भरथ दिगविजय करि के वर्ष साठि हजार लौं। आऐ अजोध्या मैं करी जिन पूज अष्ट प्रकार लौं ॥ मन मैं विचारी पूजि जिन फुनि दांन का कौं दीजिए। मुनि तौ न लेवै निसप्रही और विचार सु कीजिये ॥१३२८॥ तव अणु-वृती राजा गृहस्थ वुलाय के प्रीक्ष्या करी। निज राज प्रांगरिण पुष्प फल अंकूर फैलाई हरी॥ केतेक पाए बूंदते वा हरित काय अथाह वे। केतेक ठाढे रहे तिनहि बुलाय प्रासुक राह वे ॥१३२६॥ वूझी नृपति पैहली' न क्यो प्राऐ सु तुम यह भाषिये । वन' कही हम भगवंत के वचन सुनें करि अभिलाषिऐ ॥ हिंसा अधिक ह पाव देत सु या हरित सी काय पैं। ताते न प्राऐ अवै आये राह प्रासुक पायक ॥१३३०॥ तव व प्रसन वा पदम निधि से वस्त भरत' मगाय के। दिय दांन तिनकौं अधिक किय सनमान पूजे चाय कैं॥ १३३० : १ पहली। १३३१:१A भरथ। २ उन । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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