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________________ बुद्धि-विलास [ १४७ छ'द गीता : तामै चंद्रप्रगिप्ति तरणे पद लाष छतीस कहावै । ऊपरि पांच सहस तसु वरनन ससि को प्राय वतावै ॥ वहुरचौं गति फुनि विभव तासको ताकै मद्धि वषान्यौं। दूजी सूर्यप्रगिप्ति' सु वरनन प्राय विभव गति जान्यौं ॥१२४४॥ पद लषि पांच तास के ऊपरि तीन सहश्र वताए। त्रितिय प्रगिति दीप सागर मैं दीप वदधि' वरनाऐ ॥ ताके पद वांवन लषि उपरि सहस छतीस सुजांरगौं । चौथी जंवू दीप प्रगिप्ति सु जंवू-दीप वषारणौ ॥१२४५॥ पद ताके हैं लाष तीन परि सहस पचीस विराजै । है जु' विपाक प्रगिप्ति पंचमी ताके सुनि सावरे साजै ।। तामैं रूपी प्रादि अरूपी षटदळनु की गाथा । पद है लष चौरासी ऊपर सहस छतीस विष्याता ॥१२४६॥ अथ सूत्र वर्नन दोहा : सूत्र एक ताके कहैं, पद अठयासी लक्षि। जिय करता जिय भोगता, वरनत यहै प्रतक्षि ॥१२४७॥ अथ प्रथमांनी जोग वर्नन है प्रथमांन सु जोग पद, पांच सहश्र पवित्र । त्रस्ठि२ सलाषा पुरिष कौ, तामैं वरन चरित्र ॥१२४८॥ चौपई : बहुरि चूलिका पांच वताई, ताके पद सव सुरिगऐ भाई। है दस कोटि लाष गुरगचासे, सहस छियासी' आठ प्रकासें ॥१२४६॥ दोहा : पद इक इक के जांनियौं, दोय कोटि नव लक्षि। सहस निवासी दोय सै, सो गिनि के मन रक्षि ॥१२५०॥ पांच कहि जो चूलिका, तामैं वरनन जांनि । जल गति मैं जल वर्षणौं, मंत्र तंत्र फुनि मांनि ॥१२५१॥ १२४४ : १ सूर्यगिति । १२४५ : १ उदधि । १२४६ : १जु not there । २ सब। ३ लक्षि। १२४८ : १ प्रमांनु। २ वष्टि । २ पुरष । १२४६: १ छियाली। ducation International For Private & Personal Use Only www.jaine www.jainelibrary.org
SR No.003404
Book TitleBuddhivilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmadhar Pathak
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages214
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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