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दोहा :
छद गीता :
दोहा :
बुद्धि-विलास
ह्व तीर्थंकर त्रिभवन धनी सु तिहु लोकनि के चूड़ामनी सु ॥ १०५४॥
भाषा पार्श्व पुरांन की, मधि चरचा यह देषि । मैयामैं वरनन करो, भवि समभि हैं
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सम्हारि के ।
गरधर स्वयंभू पार्श्वजिन सौं किये प्रश्न श्राछे बुरे जन कौंन विधि उपजै सु कहहु विचारि कैं ॥ उत्तर दियो जिन सो कछुक मैं धरयो ग्रंथ मारियो । कलपित' न मैं यामैं कह्यौ भवि जन सवै उर धारियो ॥१०५६॥
चौपाई : रिषभ
श्रथ तोर्थंकर पिता माता चिन्ह जनम नगरी वर्नन तीर्थंकर चौवीस नमि, पिता-मात के नांम । जनम पुरी फुनि चिन्ह सव, वर्न' सुनौं प्रभिराम ॥ १०५७ ॥
सुवर्ण वर्ण है काय, पिता नाभि मरु देवी माय । पुरी अजोध्या जनम कल्यांन, नमिऐं वृषभ चिन्ह पहचांनि ॥ १०५८॥ प्रजित वर तन कनक विभात, जितसत्रु पिता सु विजया मात । लीन्ह जनम प्रजोध्यापुरी, हस्ती चिन्ह नमत स्वर-स्वरी ॥१०५६॥ संभव चंपक वर्ण सुगात, द्रढरथ पिता सुषेणां मात | श्रावस्ती मैं उपजे धीर, चिन्ह तुरंग अभिनंदन चामीकर वर्न, पिता स्वयंवर असरन सर्न । सिद्धारथा मात कपि अंक, पुरी अजोध्या वये' ससंक ॥ १०६१॥ सुमति सुहाटक वर्न सरीर, पिता मेघरथ वहु गुरणधीर ।
नमीं वरवीर ॥१०६०॥
मात मंगला लक्षरण कोक, जन्म अजोध्या वंदत लोक ॥१०६२ ॥ पद्म' वर्ण तन रक्त वर्षांनि, धररण पिता सु महागुरण षांनि । मात सुसीमां चिन्ह सरोज, भये प्रजोध्या हरयो मनोज ॥१०६३॥
विसेषि ॥ १०५५ ॥
१०५४ : ३ त्रिभुवन । १०५६ : १ A कलिपित । १०५७ : १ श्रब बरनौं । १०६१ : १ जये । १०६३ : १ पदम ।
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