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________________ ६४] भारतीय विद्या अनुपूर्ति [तृतीय ___ मैंने श्रीमुन्शीजीके ऊपर लिखे हुए पत्रमें लिखा है कि "भारतीय विद्या भवन" मुनिजीकी मंजूरी के अनुसार खर्च करे, उसका हिसाब रखे, और वह हिसाब हर साल हमको भेजे । तदनुसार सभी पैसे भा० वि० भ० को ही भेजे जायँगे। उसीके द्वारा फिर सभीको पैसा मिलेगा। जिसमें आपके खर्चेका भी समावेश हो जाता है। मैंने यह इसलिए किया है कि आप हिसाबके बोझसे बिलकुल मुक्त हो जायें। अब सीधे मुझसे पैसे मंगाना और सबको चुकाना आपको माफिक हो तो इतना क्लोज बदलना पड़ेगा। जो आप लिखेंगे तो यहाँसे सुधार कर पुनः पत्र भेजा जा सकेगा। परन्तु उस हालतमें सारा हिसाब जो कि अबसे कहीं ज्यादा होगा आप ही को रखना होगा। कुछ हिसाब आप रखें और कुछ हिसाब विद्याभवन रखे यह रास्ता सीधा और उचित नहीं है। इसलिए आप इस विषयको भी ध्यानपूर्वक पूर्वापर सोच कर अपने सुभीतेके अनुसार निर्णय करें। जो जो पुस्तकें मैंने कलकत्तेसे वापस पार्सल में अहमदाबाद भेजी थी उसकी तो ५०/५० प्रति मैंने रख ही ली थी। बाद उसके जो जो पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं उसकी एक भी नकल मेरे पास नहीं है। कोई पूछे तो मैं यह भी नहीं बता सकता कि कौन कौन पुस्तके प्रकाशित हुई। आप उचित समझें तो बाकीकी पुस्तकोंकी ५०/५० नकलें रेल पार्सलसे मेरे पास भिजवा दें। पूज्य माताजीका प्रणाम । उनकी तबीयत आप देख गये वैसी ही है। मेरी तबीयत आगेसे ठीक है और सब मजे में हैं । आप आनंदमें होंगे। आपका विनीत बहादुरसिंह सिंघीजीका यह पत्र जब मुझे मिला तब मैं अहमदाबाद था और देशमें चारों और चलते हुए राष्ट्रीय आन्दोलनका उन्मनस्क भावसे अवलोकन करता हुमा अस्थिरवित्त बन रहा था। जैसलमेरके ज्ञानभण्डारोंका अवलोकन करने जाना 4. ९ ऑगस्टको, सरकारने काँग्रेसकी वर्किंग कमीटीको पकड कर जेलखानों में ता. बन्ध कर दिया जिससे सारे देश में बडा उग्र और तंग वातावरण फैल गया था। उसमें हमारे भवनके भी कई विद्यार्थी अपना अभ्यास वगैरह छोड कर, अपनी अपनी इच्छा और उत्साहके अनुसार इधर-उधर राष्ट्रीय आन्दोलनमें सम्मीलित होनेके लिये चले गये । सरकार द्वारा जो अत्याचार और दमननीतिका क्रूर चक्र घुमाया जाने लगा उसको देख - सुन कर हरएक राष्ट्रप्रेमी मनुष्यका दिल व्यथित हो रहा था। मेरा मन भी बहुत उत्तेजित होता रहता था और अपने चालू साहित्यिक कार्यमें बह किसी तरह लगता नहीं था। मन रह रह कर आन्दोलनकी ओर खिंचा जा रहा था। परन्तु अङ्गीकृत कार्य, मुझे बलात्कारसे अपने मनको अङ्कुशमें रखनेकी भाज्ञा करता था। इससे अन्तरमें सतत एक बडा भारी द्वन्द्व युद्ध चल रहा था और उसके सबबसे मेरी मानसिक और उसके साथ शारीरिक स्थिति भी कुछ व्याकुलसी हो गई थी। स्थानपरिवर्तनकी रष्टिसे मैं अहमदाबाद चला गया । परन्तु, वहां तो इस आन्दोलनने और भी उग्र रूप पकड रखा था। अहमदाबादका युवकवर्ग-स्कूलों और कॉलेजों में पढनेवाले लडके और लडकियोंका समूह-भान्दोलनका अग्रगामी सूत्रधार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003403
Book TitleBhartiya Vidya Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvijay
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year
Total Pages408
LanguageHindi, Sanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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